________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०४
प्रवचन-५८ आचारपालन : सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्य
असंख्य वर्षों से इस देश में राजाओं के सर पर देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी रही और प्रजा के योगक्षेम की भी जिम्मेदारी रही और प्रजा के योगक्षेम की भी जिम्मेदारी उनकी रही। भारत में हजारों राजा रहे और अपनी-अपनी धार्मिक मान्यता के अनुसार आचार-मर्यादाएँ प्रस्थापित करते रहे। प्रजा को उन आचार-मर्यादाओं का पालन करना होता था। धीरे-धीरे कुछ आचार परंपरागत बन जाते थे। जो कोई व्यक्ति उन आचारों का पालन नहीं करता वह दंडित होता था, समाज से तिरस्कृत या बहिष्कृत भी होता था।
एक भारत में अनेक देश हैं....जैसे गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान वगैरह....। और हर देश के अपने विशिष्ट परंपरागत आचार होते थे। अपनेअपने देश के आचारों का पालन करना, राष्ट्रीय और सामाजिक कर्तव्य माना जाता था। विशेष रूप से ये आचार-मर्यादाएँ होती थी : भोजनविषयक, वस्त्रपरिधानविषयक और संबंधविषयक | जो व्यक्ति या जो परिवार इन देशाचारों का पालन करता था उसको राजपुरुषों की ओर से अथवा समाज की ओर से उपद्रव नहीं होते थे, वह शान्ति से अपनी जीवनयात्रा करता रहता था। ___ शान्तिमय जीवन व्यतीत करने के लिए निरुपद्रवी देश और समाज में रहना आवश्यक होता है। इसलिए यदि एक राज्य में-एक देश में उपद्रव होते थे, धर्मविरूद्ध आचरण होता था, तो लोग दूसरे राज्य में चले जाते थे। ___ परन्तु, कहीं पर भी जायें, उस देश के आचारों का पालन करना आवश्यक होता था। गृहस्थजीवन का यह सामान्य धर्म है। असभ्यता के आक्रमण का परिणाम :
परन्तु वर्तमानकाल की परिस्थिति बदल गई है। अब इस देश में और दुनिया के ज्यादातर देशों में राजा ही नहीं रहे! राजाओं के राज्य नहीं रहे! भारत एक सार्वभौम राज्य हो गया है। प्रजातंत्र आ गया है। अपने देश की मोक्षप्रधान आचार-परंपराएँ लुप्तप्रायः हो गई हैं | अपनी भारतीय संस्कृति पर पहले मुसलमानों के आक्रमण होते रहे और बाद में अंग्रेजों के शासनकाल में ईसाइयों के सांस्कृतिक आक्रमण हुए। विदेशी असभ्यता के आक्रमणों ने अपनी भव्य आचार-परंपराओं को तोड़ दिया ।
For Private And Personal Use Only