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प्रवचन-५७ दूसरा कोई रास्ता नहीं रहा उनके पास। एक दिन आत्महत्या कर ली उन्होंने।
हालाँकि धनप्राप्ति के लिए केवल भाग्य पर भरोसा रखकर नहीं बैठने का है, कुछ पुरुषार्थ करना चाहिए | योग्य दिशा में, योग्य मात्रा में पुरुषार्थ करना चाहिए। परन्तु फिर भी निर्णायक तो भाग्य ही बनेगा। इसलिए आय के अनुसार व्यय करना, सर्वथा उचित है।
'व्यय के अनुसार आय' के सिद्धान्त पर चलनेवाले लोग ही चोरी, बेईमानी वगैरह पाप करते हैं। एक सरकारी ऑफिसर ने बताया था कि उसकी पत्नी को ज्यादा खर्च करने की आदत थी। पन्द्रह दिन में ही उसकी तनख्वाह पूरी हो जाती थी। ऑफिसर ने पत्नी को बहुत समझाया कि 'सोच-समझकर खर्च किया करो, ऐसे घर कैसे चलेगा?' फिर भी पत्नी नहीं मानी। ऑफिसर को मजबूरन बेईमानी-रिश्वतखोरी करनी पड़ी। तनख्वाह से भी चार गुनी इन्कम होने लगी। पत्नी खुश हो गई.... | किराये का बंगला लिया, फरनिचर, फ्रीज, फोन, फैन इत्यादि बसाया । परन्तु एक दिन ऑफिस से फोन आया कि साहब रिश्वत के अपराध में रंगे हाथ पकड़े गये हैं और हाथ में हथकड़ियाँ पड़ गई हैं। नौकरी से 'डिसमिस' हो गये हैं।' बीवी रोने लगी....दूसरा क्या करें? जो कुछ बसाया था, धीरे-धीरे बेचना पड़ा।
'इन्कम' के अनुसार ‘एक्सपेन्स' करनेवालों का मन कुछ निश्चिंत और निर्भय रह सकता है। मन कुछ चिन्ताओं से मुक्त भी रह सकता है। कर्ज होता नहीं है। सदैव आर्थिक चिन्ता बनी नहीं रहती है। खर्च का तरीका : ___ व्यय कैसे करना, इस विषय में टीकाकार आचार्यश्री ने नीतिशास्त्र के माध्यम से बताया है :
‘पादमायान्निधिं कुर्यात् पादं वित्ताय घट्टयेत्।
धर्मोपभोगयोः पादं पादं भर्तव्यपोषणे ।।' प्रतिवर्ष आपने जितना धन कमाया हो, जितनी 'इन्कम' हुई हो, उसके चार भाग करें। उसमें से एक भाग को आप अपनी स्थायी संपत्ति में जोड़ दें। एक भाग को आप अपने व्यापार में जोड़ दें, एक भाग कुटुम्ब-परिवार के लिए - उनका खाना-पीना-कपड़े-शिक्षा इत्यादि के लिए रखें और एक भाग धर्मकार्यों
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