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प्रवचन- ५५
६९
'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ के टीकाकार आचार्यदेव ने, अच्छी जमीन के कुछ लक्षण बताये हैं : १. जहाँ पर दूर्वा के अंकुर प्रस्फुटित न होते हों।
२. जहाँ पर दर्भ के छोटे-छोटे पौधे लगे हुए नहीं हों । ३. जहाँ की मिट्टी की बास- सुगन्ध अच्छी हो ।
४. जहाँ की मिट्टी का रंग अच्छा हो ।
५. जिस जगह से स्वादिष्ट पानी निकलता हो ।
६. जिस भूमि से धन निकले, खज़ाना निकले।
सभा में से : इसमें कुछ लक्षण तो ऐसे हैं कि जो भूमि देखते ही पता लग जायँ, परन्तु कुछ लक्षण ऐसे हैं .... जैसे खज़ाना होना .... वगैरह उसका पता कैसे लग सकता है?
महाराजश्री : घर में किसी जगह खज़ाने की आशंका तो नहीं है न? इसलिए तो नहीं पूछते हो न ? उपाय बताता हूँ, परन्तु खज़ाना निकले तो कुछ हिस्सा धर्मक्षेत्र में खर्च करना, भाई !
कुछ निमित्तों से जमीन की - मकान की परीक्षा की जाती है। कुछ ऐसे शकुनों से पता लग सकता है, कुछ ऐसे स्वप्नों से पता लग सकता है और कुछ ऐसे दिव्य शब्दों से पता लग सकता है। ये सारे निमित्त इन्द्रियातीत होते हैं यानी इन्द्रिय-प्रत्यक्ष नहीं होते। ये निमित्त सही हैं या गलत, इसका निर्णय भी स्वस्थ मन से करना चाहिए। संदेह नहीं होना चाहिए, विपर्यय नहीं होना चाहिए, अनिर्णायकता नहीं होनी चाहिए और निमित्तज्ञान का अभाव या अपूर्णता नहीं होनी चाहिए ।
निमित्त का सत्यासत्य - विवेक जरूरी :
एक गाँव में हम गये थे, वहाँ एक श्रावक ने मुझे कहा: 'महाराज साहब, मेरे घर पधारने की कृपा करेंगे?' मैंने पूछा 'क्यों?' उसने बताया कि मेरी एक छोटी-सी लड़की है, उसने ऐसा स्वप्न देखा है कि मेरे घर में किसी जगह भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति है ! लड़की कहती है, कि 'मूर्ति कहती है- मुझे बाहर निकालो!' हमने घर में, जहाँ-जहाँ लड़की ने बताया वहाँ-वहाँ खोद डाला, परन्तु अभी तक मूर्ति नहीं निकली है । आप पधारें और बताने की कृपा करें कि हम कहाँ पर खोदें ?'
मैंने कहा : ‘महानुभाव, एक छोटी बच्ची के स्वप्न की बात यथार्थ मानकर
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