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प्रवचन-५६ धर्म को भूल जाते हैं। फैशन और अन्धानुकरण में भटक जाते हैं। इन दोनों का ऐसा ही हुआ है। ये कपड़े उन्होंने फैशन के नाम के पहने हैं। दूसरे लड़कों का अनुकरण किया है।
दोनों की अच्छी पिटाई हुई थी। थोड़े दिन अस्पताल में आराम मिल गया होगा और मन में से भी लुंगी निकल गई होगी! ताबीज ने जान ले ली :
ऐसी ही एक घटना अहमदाबाद में घटी थी। भारत का विभाजन हुआ था उस समय | अहमदाबाद में हिन्दू-मुसलमान के भयानक दंगे हो रहे थे। कोई अपने घर से बाहर नहीं निकल सकता था। गरीब लोग जो कि रोजाना कमाते और खाते थे, वे तो भूख से ही मर रहे थे। एक गरीब मुसलमान मिल में नौकरी करता था। पंद्रह दिन से मिल में नहीं जा रहा था। जब घर में एक पैसा भी नहीं रहा और दंगे कुछ कम हो गये तब उसने मिल में जाने का सोचा। वह घर से निकला। रास्ते पर सन्नाटा था। बहुत कम राहगीर दिखाई देते थे रास्ते पर | कोई डरता हुआ चलता था तो कोई दौड़ता हुआ जाता था! वातावरण में भय था, आतंक था।
जब यह मुसलमान मिल के द्वार पर पहुँचा, दरबान ने उसको रोक दिया । इसने कहा : 'भैया, मुझे जाने दो....आज पंद्रह दिन के बाद आ पाया हूँ इधर नौकरी करने....।'
गोरखे ने कहा : 'तुम भीतर नहीं जा सकते, देरी से आये हो, चले जाओ यहाँ से।' इसने जब बार-बार प्रार्थना की तब गोरखे ने गुस्से में आकर कहा : 'चला जाता है या नहीं? पुलिस को बुलाकर सौंप दूं क्या?' निराश होकर जब वह वापस लौटा, उसके दिल में अपार दर्द था । बाहर का भय तो था ही। घर में खाने को कुछ बचा नहीं था, पास में रुपये थे नहीं | चला जाता है रोड़ पर | रोड़ पर एक छोटी-सी दुकान थी, दुकान में कुछ खिलौने और देवीदेवताओं के फोटो वगैरह थे। किसी हिन्दू देवता के ताबीज भी थे। इस मुसलमान को हिन्दू देवता का ताबीज लेने की इच्छा हुई। चूंकि उसको जिस रास्ते से गुजरना था, वह रास्ता पूरा हिन्दुओं का था। उसने ताबीज खरीद लिया और अपने गले में डाल दिया। अब वह अपने आपको निर्भय महसूस करने लगा। 'चलो, नौकरी तो नहीं मिली, परन्तु सलामत घर तो पहुँच जायेंगे!' तेज रफ्तार से वह चलने लगा।
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