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प्रवचन-५६
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की पत्नी भी राजमहल गई । राजमहल के नारीवृन्द ने रामशास्त्री की पत्नी को बिल्कुल साधारण वस्त्रों में देखा .... सादगी की मूर्ति देख लो ! न कोई आडम्बर, न कोई अलंकार ! नारीवृन्द ने सोचा : 'रामशास्त्री जैसे रामशास्त्री की धर्मपत्नी और कोई सुन्दर साजसज्जा न हों तो अच्छा नहीं लगता। अपन उनको सुन्दर वस्त्र पहनाएँ और मूल्यवान् अलंकारों से सुशोभित करें ।' नारीवृन्द था पेशवा का ! रामशास्त्री की पत्नी को घेर लिया। पहना दिये सुन्दर वस्त्र ! सजा दिये अलंकार ! वह बेचारी तो इनकार करती रही.... पर सुने कौन ? राजपरिवार की महिलाओं को रामशास्त्री की पत्नी की ओर गुणानुराग था, प्यार था । बस, फिर क्या ? उसको सजाकर राजमाता के पास ले गईं। राजमाता भी खुश हो गई।
भाई, तुम्हारी गलती हो रही है :
राजमाता को मिलकर जब वह राजमहल से बाहर आई तो पालकी तैयार थी! पालकी में बैठकर वह अपने घर पर आई । राजपुरुष ने रामशास्त्री के घर के द्वार खटखटाये । रामशास्त्री ने स्वयं द्वार खोले और बाहर आये । देखा तो श्रीमतिजी पालकी में बैठी हैं! शास्त्रीजी तुरंत ही सारी बात समझ गये! पालकी के साथ जो राजपुरुष आये थे, उनको शास्त्रीजी ने कहा । : ‘भाई, आप लोगों की कुछ गलती हो रही है, आप लोग जो घर खोजते हो वह यह नहीं है। इतनी साजसज्जा की महिला मेरे सादे - सीधे घर की कैसे हो सकती है?'
शास्त्रीजी ने मकान का दरवाजा बन्द कर दिया । पालकी में बैठी हुई शास्त्रीजी की पत्नी ने बात सुन ली थी! उसने राजपुरुषों से कहा : 'पालकी वापस राजमहल ले चलो।' राजमहल में जाकर शास्त्रीजी की पत्नी ने सारे गहने उतार दिये और अपने सादे वस्त्र पहन लिये। पैदल चलकर अपने घर पर आई। शास्त्रीजी खुश हो गये । उन्होंने अपनी पत्नी से कहा : 'तुझे मालूम है? तू घर में नहीं थी तब कौन यहाँ आया था?'
'कौन आया था?' पत्नी ने पूछा ।
'एक खूबसूरत महिला, बड़ा शृंगार किया था उसने और वह अपने घर में प्रवेश करना चाहती थी!'
सुनकर शास्त्रीजी की पत्नी बात का मर्म समझ गई और हँसकर बोली : 'उस बेचारी को पता नहीं होगा कि आप एक पत्नी व्रतधारी महापुरुष हैं।'
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