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प्रवचन-५५ वहाँ १० मिनट खड़े रहे। आवाज बन्द हो गई थी। हम भी सो गये। कुछ भी दुर्घटना नहीं हुई। प्रातः आवश्यक धर्मक्रिया कर जब हमने वहाँ से प्रयाण किया, चौकीदार को कहा : 'भाई, हम जाते हैं, हमें कोई तकलीफ नहीं हुई है! न भूत आया....न भूत देखा! हाँ, उस दरवाजे पर आवाज आई थी, परन्तु वह तो हवा से दरवाजे के द्वार ही खटखट करते थे, हमने द्वार पर चिटकनी लगा दी, आवाज बंद हो गई! इसलिए भूत की शंका नहीं रखना!'
निमित्त-परीक्षा अच्छी तरह होनी चाहिए। जमीन या मकान के लक्षण निमित्त-परीक्षा से ही जाने जा सकते हैं। परीक्षा करनेवाले का ज्ञान यथार्थ होना चाहिए। परीक्षा करते समय उसका मन स्वस्थ होना चाहिए। उसका निर्णय संशयरहित होना चाहिए।
गुजरात के एक शहर में मेरा एक परिचित परिवार रहता था। यों तो वे लोग एक छोटे गाँव में रहते थे, परन्तु वे शहर में रहने आये। किराये पर एक मकान ले लिया और एक दुकान ले ली। परिवार सहित शहर में बस गये और धन्धा शुरू कर दिया। परन्तु एक वर्ष में ही लाख रूपये का नुकसान कर दिया! ४० साल पहले की बात कहता हूँ। जिस घर में रहते थे, उस घर में भी शान्ति नहीं रही। बीमारी ही बीमारी और भूत-प्रेतों का दर्शन! शीघ्र ही उन्होंने घर बदल दिया। दुकान बंद कर दी और दो लड़कों को बंबई भेज दिया। तब जाकर वे स्थिर हुए, स्वस्थ बने और कुछ समृद्धि पायी।
दूसरे एक भाई ने मुझे बताया कि उनको रात्रि के समय सतत तीन दिन तक एक आवाज सुनाई देती थी - 'मुझे बाहर निकालो, मुझे बाहर निकालो....।' वे महानुभाव कुछ समझ नहीं पाये। उन्होंने एक अनुभवी मांत्रिक से पूछा। मांत्रिक ने बताया कि तुम्हारे घर में कुछ न कुछ दबा हुआ पड़ा है। तुम खोदकर देखो। उसने जगह बताई, खोदा गया तो भीतर से एक अस्थिपिंजर निकला! यह निकल जाने के बाद उस भाई के पास विपुल संपत्ति आई और परिवार में भी शान्ति हुई। भूत-प्रेत की भी अपनी विशाल दुनिया है :
सभा में से : आपने भूत-प्रेत की बात कही, क्या वास्तव में भूत-प्रेत होते हैं? महाराजश्री : होते हैं वे भी! निम्नस्तर के देवों की विशाल दनिया है। जैनदर्शन संसार की चार गति बताता है। देवगति, मनुष्य गति, तिर्यंच गति और नरक गति । देवगति में असंख्य देव हैं। देवियाँ भी होती हैं। उनमें अनेक
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