________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७७
प्रवचन-५५ ___'मुंबई समाचार' अखबार के ही कागज में वासक्षेप बंधा हुआ था! सारी बात 'बोगस' सिद्ध हुई।
एक गाँव में एक दिलचस्प घटना सुनने को मिली थी। वहाँ एक परिवार एक किराये के मकान में रहता था। किसी ने शंका की थी कि इस मकान में रहनेवाला सुखी नहीं होता है। इस परिवार का भी वैसा ही था। न व्यापार जमता था, न घर में शान्ति और प्रेम रहता था। रोजाना सास-बहू के झगड़े! पुत्र और पुत्रवधू में भी झगड़े!
पुत्रवधू को मिरगी आने लगी। उसके दांत बंध जाने लगे। शरीर काँपने लगा....मूर्छा आने लगी। आसपास के कुछ लोगों ने कहा : 'बहू को चुडैल लगी है....किसी मांत्रिक को बताइये ।' गाँव में एक ही मुसलमान मांत्रिक था। उसको बुलाया गया। तीन दिन तक रोजाना आता रहा। उसे जो जानना था वह जान लिया। चौथे दिन उसने आकर कहा : 'आज मैं इस चुडैल से लगा, मारकर भगाऊँगा....इसलिए मुझे गुप्त मंत्रप्रयोग करने पड़ेंगे। सो आप सब इस कमरे से चले जायँ। सबको बाहर निकाल दिया, भीतर से दरवाजा बन्द कर दिया। खिड़कियाँ भी बन्द कर दीं। दीया जलाया, धूप किया और उस औरत को जगाया। दोनों का पूर्व संकेत था। दोनों की दुराचार-लीला होने लगी। बीच-बीच में वह मियां हल्ला मचाता, औरत भी चिल्लाती....ताकि बाहरवाले समझें कि चुडैल को निकाला जा रहा है!
परन्तु जब एक घंटा हो गया, द्वार खुले नहीं तब उस महिला के पति से रहा नहीं गया, उसने मकान के छप्पर को खोलकर देखा.... दोनों की पापलीला देख ली। फिर क्या हुआ होगा, वह क्या मुझे कहना पड़ेगा? आप समझ सकते हो। मियां की तो हड्डी-पसली एक भी सलामत नहीं रही होगी।
भूत की शंका के गैरलाभ भी इस प्रकार उठाते हैं लोग! कभी वास्तविकता होने पर भी लोग नहीं मानते! आखिर तो जीव के जैसे पापकर्म-पुण्यकर्म होते हैं, उसी प्रकार सुख-दुःख मिलते हैं। कर्मोदय में निमित्त की अपेक्षा :
सभा में से : सुख और दुःख का आधार यदि पुण्यकर्म और पापकर्म होते हैं तो फिर जमीन-मकान आदि के लक्षण वगैरह देखने की आवश्यकता क्यों?
महाराजश्री : सही बात है आपकी, परन्तु फिर भी जानकारी है अपूर्ण आपकी| जीवात्मा के सभी सुख-दुःख के मूलभूत कारण पुण्य-पाप कर्म हैं,
For Private And Personal Use Only