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प्रवचन-५५
७९ एक जरूरी सावधानी :
गृहनिर्माण के विषय में तो ग्रन्थकार एक ही सावधानी रखने की बात करते हैं। मकान में प्रवेश-निर्गमन के अनेक द्वार नहीं होने चाहिए! परिवार की और धन-संपत्ति की सुरक्षा की दृष्टि से यह बात कही गई है। अनेक प्रवेश-निर्गमन के द्वार होने से चोर, बदमाश वगैरह का खतरा ज्यादा रहता है। परिवार की महिलाओं की लज्जा-मर्यादा भी नहीं रह सकती है।
हाँ, जो लोग चारों दरवाजों पर चौकीदार रख सकते हों, सुरक्षा का कड़ा प्रबन्ध कर सकते हों, वे लोग अनेक द्वार रखें तो चिन्ता की बात नहीं हो सकती है। जैसे पहले राजमहल में रक्षा का प्रबन्ध रहता था न? फिर भी रानीवास में प्रवेश-निर्गमन के अनेक मार्ग नहीं रखे जाते थे! एक ही दरवाजा होता था आने का और जाने का! यह थी सुरक्षा की दृष्टि । यह है गृहस्थ जीवन का सामान्य धर्म!
गृहस्थ को घर में रहकर धर्मआराधना करने की होती है, यदि घर के विषय में इतनी सावधानियाँ रखी जायँ, तो निष्प्रयोजन अनेक उपद्रव टल जायँ और शान्ति से धर्माराधना हो सके। उपद्रवग्रस्त, दरिद्रताग्रस्त गृहवास में मनुष्य इच्छा होने पर भी विशेष धर्मपुरुषार्थ नहीं कर पाता है। इसलिए इस सामान्य धर्म के पालन की आवश्यकता बताई गई है।
योग्य स्थान पर गृहनिर्माण होना चाहिए-इस नौवें सामान्य धर्म का विवेचन यहाँ पूर्ण करता हूँ।
आज बस, इतना ही।
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