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प्रवचन- ५५
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यह बात तो सही है, परन्तु ऐसे भी कर्म होते हैं कि जो निमित्त पाकर ही उदय में आते हैं। वे निमित्त होते हैं द्रव्यात्मक, कालात्मक और क्षेत्रात्मक । जैसे, मनुष्य के पास कोई उत्तम द्रव्य, उत्तम वस्तु आती है और उसका भाग्योदय होता है! उसका पुण्यकर्म तो था, परन्तु कोई निमित्त की उसको अपेक्षा थी । उसके पास दक्षिणावर्त्त शंख आया और पुण्य उदय में आया ! उसके घर में पद्मिनी नारी आई और पुण्यकर्म उदय में आया ! उसके घर में उत्तम पुत्र का जन्म हुआ और पुण्यकर्म उदय में आया ! ये हैं द्रव्यात्मक निमित्त।
कालात्मक निमित्त उसको कहते हैं कि पुण्यकर्म अमुक उम्र होने पर ही उदय में आये। गुजरात का राजा कुमारपाल ५० वर्ष की उम्र में राजा बना था । ५० वर्ष की उम्र में पुण्यकर्म उदय में आया। वैसे किसी को १० वर्ष की आयु में, किसी को २५ वर्ष की आयु में कर्म उदय में आता है।
वैसे क्षेत्रात्मक निमित्त भी होते हैं । एक व्यक्ति इस शहर में जब आया तब ही उसको पुण्योदय हुआ। देश में-गाँव में था तब उसके पास पापोदय था । पुण्यकर्म और पापकर्म सनिमित्तक हैं :
सभा में से : यहाँ पर हम लोग जो बैठे हैं, उनमें से ६० प्रतिशत लोगों ने यहाँ आकर ही रुपये कमाये हैं ।
महाराजश्री : वैसे, कुछ लोग बंबई जाकर, कुछ लोग मद्रास जाकर.... दूसरी दूसरी जगह जाकर धन-संपत्ति कमाते हैं, यह क्या है? पुण्यकर्म तो है, परन्तु क्षेत्रनिमित्तक पुण्यकर्म! अमुक क्षेत्र में जायँ तो ही पुण्यकर्म उदय में आये !
मैंने ऐसे लोग देखे हैं कि जिस घर में वे २५ साल से रहते थे, दरिद्र थे, वे लोग नये- दूसरे मकान में रहने गये और उनकी दरिद्रता चली गई! ३० साल से जिस दुकान में धंधा करते थे, लाख रुपये भी जमा नहीं कर पाये थे, दुकान बदल दी और दो वर्ष में पाँच लाख रुपये जमा कर लिए! इसमें स्थान का, जगह का, क्षेत्र का महत्त्व मानना ही पड़ेगा । पुण्यकर्म और पापकर्म सनिमित्तक होते हैं और अनिमित्तक भी होते हैं । कुछ कर्म ऐसे भी होते हैं जो बिना निमित्त उदय में आ जाते हैं । जहाँ तक जमीन और मकान का प्रश्न है, सनिमित्तक कर्मों का महत्त्व होता है ।
जहाँ तक हो सके, जमीन और मकान लेते समय आप लक्षण देखें । निमित्त परीक्षा के माध्यम से देखें । शंका, विपर्यास और अज्ञान को दूर करके देखें ।
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