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प्रवचन-५६ . दसवाँ सामान्य धर्म है वेश-भूषा। आज आप लोग केवल
शरीर-सौन्दर्य को लक्ष्य करके और एक-दूसरे का अन्धअनुकरण करके वस्त्र-परिधान कर रहे हो! तुम्हारे वैभव-रुतबे के अनुरूप, तुम्हारी उम्र के अनुरूप, तुम्हारी अवस्था के अनुरूप और तुम्हारे देश-राष्ट्र के अनुरूप तुम्हारी वेश-भूषा होनी चाहिए। लोगों में मज़ाक हो वैसी वेश-भूषा से बचना चाहिए। धर्मस्थानों में कुछ लड़के-लड़कियाँ, समझ में नहीं आता। है....वे 'एक्टर'-'एक्ट्रेस' बन कर क्यों आते हैं? क्या वे
सज्जन-सद्गृहस्थ और सन्नारी बनकर नहीं आ सकते? . जो लोग अपने देश के अनुरूप, अपने समाज के अनुरूप कपड़े
नहीं पहनते हैं वे कभी न कभी आफत का शिकार हो ही जाते हैं। =. उत्तर प्रदेश की एक सच्ची घटना मैं आपको बता रहा हूँ!
प्रवचन : ५६
परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर, आचार्यदेव श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ने स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में क्रमिक मोक्षमार्ग का प्रतिपादन किया है। जिस किसी मुमुक्षु को क्रमिक आत्मविकास करते जाना है और आत्मानन्द की निकटता प्राप्त करना है, इसके लिए इस ग्रन्थ का मार्गदर्शन सर्वोत्तम सिद्ध होगा। ___ गृहस्थ जीवन के एक-एक कर्तव्य में कैसी दिव्य ज्ञानदृष्टि दी है ग्रन्थकार ने! ताकि कर्तव्य मात्र कर्तव्य नहीं रहे, परन्तु धर्म बन जाय! जीवन के हर कर्तव्य को धर्मरूप बना देने के लिए 'धर्मबिन्दु' का गहन और व्यापक अध्ययन करना चाहिए | मैं भी इसलिए इन ३५ सामान्य धर्मों का व्यापक और गहराई में जाकर विवेचन कर रहा हूँ ताकि आपके हर कर्तव्य के पालन में धार्मिकता आ जाय। आपका समग्र जीवन-व्यवहार मंगलमय बन जाय । मनुष्य-जीवन की महत्त्वपूर्ण क्रिया : वस्त्र-परिधान :
दसवाँ सामान्य धर्म है वेश-भूषा| गृहस्थ को कैसे वस्त्र पहनने चाहिए, इसका समुचित मार्गदर्शन दिया गया है। आज के युग में यह मार्गदर्शन विशेष महत्त्व रखता है। चूंकि आज आप लोग केवल सौन्दर्य की दृष्टि से और
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