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प्रवचन-५४
६७ चारूभाई को सपरिवार सेठानी के वहीं भोजन का निमंत्रण मिलता | चारूभाई भी सेठानी का बैंक का काम, बाजार काम वगैरह कर देते थे। धीरे-धीरे चारूभाई का सेठानी के साथ संबंध घनिष्ट होता चला । भानु चली गई होती अपने मायके, बच्चे चले गये होते स्कूल, तब चारूभाई और सेठानी का संबंध प्रेमसंबंध हो जाता | शारीरिक संबंध भी हो गया। ___ जब चारूभाई की पत्नी भानु को पता लगा, तब बहुत देर हो गई थी। पति-पत्नी के बीच झगड़े होने लगे। चारूभाई भानु को मारने लगे। 'डायवर्स' लेने की बात आ गई! सेठानी ने चारूभाई को वैसे मोहपाश में फँसा लिया था कि चारूभाई भानु को छोड़ने तैयार था, परन्तु सेठानी को नहीं! यह तो अच्छा हुआ कि चारूभाई के एक मित्र ने बड़ी बुद्धिमत्ता से काम लिया और इस परिवार को अधोगति से बचा लिया। बंगला खाली करवा दिया और थोड़े महीने के लिए चारूभाई को सपरिवार उनके गाँव में भेज दिया। पास-पड़ोस के साथ संबंध में विवेक जरूरी :
पड़ोस के साथ कितना संबंध रखना, किसके साथ रखना....वगैरह बातें बड़ी महत्त्व की होती है। आज-कल के सिनेमा देवनेवालों के दिमाग तो इतने बिगड़े हुए हैं कि जीवन बिगड़ने में कुछ देरी नहीं लगती! चूँकि शील-सदाचार का मूल्य ही गिरा दिया है आप लोगों ने! 'मैं शीलभ्रष्ट बनूँगा तो मेरी दुर्गति होगी, मेरा जीवन, मेरे परिवार का जीवन नष्ट हो जायेगा....'यह चिंता होती है आप लोगों को?
मात्र धार्मिक दृष्टि से नहीं, परिवार की सुखशांति की दृष्टि से भी यह बात सोचना अति आवश्यक है। कुसंग बहुत खराब तत्त्व है | कुसंग से मनुष्य शराबी बने हैं, कुसंग से मनुष्य जुआरी बने हैं। पड़ोस में यदि जुआ खेला जाता है, शराब की मेहफिलें जमती हैं, तो आज नहीं....कल नहीं दो-चार महीने के बाद आप भी एक दिन जुआ खेलने बैठ जाओगे! शराब का एकाध प्याला भी लेने की इच्छा हो जायेगी। आप शायद बच जाओगे, दृढ़ रहोगे, तो आपके युवान लड़के उसमें फँसेंगे! आखिर, पड़ोसी-धर्म अदा तो करना पड़ता है न?
अब आगे, कैसी जमीन पर मकान बनाना, कैसा मकान बनाना, शुभाशुभ की परीक्षा कैसे करना....वगैरह बातें बताऊँगा।
आज बस, इतना ही।
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