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प्रवचन-५५ F. कुछ एक निमित्त प्रयोगों के द्वारा जमीन की, मकान की
परीक्षा की जाती है। कुछ शकुन से मालूम किया जा सकता है। कुछ ऐसे स्वप्न भी आते हैं... जिनके माध्यम से अच्छाबुरा जाना जा सकता है। कुछ ऐसे दिव्य संकेत शब्दों के जरिये भी मिलते हैं....मालूम पड़ जाते हैं। मकान अच्छा होगा, अच्छे लक्षणों से युक्त होगा....तो उसमें प्रवेश करते ही तुम्हें प्रसन्नता होगी....आहलाद होगा! वातावरण घनघोर आषाढ़ी बादलों से घिरा हुआ नहीं, पर सुखद, शीतल वसंतऋतु-सा आलादक और परितोषपूर्ण होगा। सभी भूत उपद्रवी नहीं होते हैं। भूत अच्छे भी होते हैं और खराब भी होते हैं! वैर की वासना से यहाँ आते हैं, वैसे प्रेम की वासना के कारण भी आ सकते हैं। जावात्मा के तमाम सुख-दुःख की जड़ है तो वह है पुण्यपाप कर्म! परन्तु ऐसे भी कुछ कर्म होते हैं जो कुछ न कुछ निमित्त पाकर उदय में आते हैं। ये निमित्त होते हैं द्रव्यात्मक, कालात्मक और क्षेत्रात्मक।
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प्रवचन : ५५
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परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर, आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ने स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रन्थ में, क्रमिक मोक्षमार्ग बताया है। उन्होंने प्रारंभ किया है गृहस्थ के सामान्य धर्म से। ३५ प्रकार के सामान्य धर्म बताये हैं। इसमें नौवाँ धर्म है : 'स्थाने गृहकरणम् ।' गृहस्थ को चाहिए कि योग्य जगह पर वह मकान बनवाये। यानी जहाँ जगह मिली वहाँ मकान बना लिया, ऐसा नहीं होना चाहिए | चूँकि आप कैसे मकान में रहते हो, आपकी संपत्ति और विपत्ति का वह प्रमुख कारण बन सकता है। यदि जमीन लक्षणवती होगी तो उस मकान में रहनेवाला वैभवशाली बन सकता है, परिवार की सुख-संपत्ति बढ़ सकती है। यदि जमीन लक्षणवती नहीं होगी तो उस मकान में रहनेवाला निर्धन हो सकता है, परिवार में मौत भी हो सकती है और अनेक आपत्तियाँ आ सकती हैं। जमीन के कुछ मार्गदर्शक लक्षण :
यदि नया ही मकान बनाना है तो जमीन के लक्षण अवश्य देखने चाहिए।
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