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प्रवचन-५२ म.सामान्य धर्म का पालन करने से अनेक प्रकार की समस्याओं
का निराकरण सहज ढंग से होता है। . ऐसे व्यक्ति या विभूति का आश्रय लो कि जो तुम्हारी रक्षा-सुरक्षा
कर सके। . 'आश्रय' संपत्ति या विपत्ति का आधार है।
अर्थपुरुषार्थ एवं कामपुरुषार्थ साधन है, साध्य नहीं है। साध्य तो है धर्मपुरुषार्थ! साध्य को भुलाकर साधन में ही खो जाना बुद्धिमत्ता नहीं है। अपने योग्य आश्रय प्राप्त करके उसे बराबर वफादार रहो।
आश्रयभूत व्यक्ति का कभी भी विश्वासघात मत करो। • विश्वास को सम्हालना.... भरोसे को आँच नहीं आने देना
बड़ी महत्त्व की बात है। . विश्वास के सहारे तो दुनिया चलती है। . विश्वासघात के जैसा अन्य कोई पाप नहीं है।
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प्रवचन : ५२
परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर, आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में जो क्रमिक मोक्षमार्ग बताया है, उसमें सर्वप्रथम उन्होंने गृहस्थ का सामान्य धर्म बताया है। ३५ प्रकार के सामान्य धर्म बताये हैं। यदि संसार के गृहस्थ लोग इस ३५ प्रकार के सामान्य धर्म को अपने अपने जीवन में आनन्द से जीये, तो दुनिया में एक अपूर्व क्रान्ति आ सकती है, बहुत ही सुन्दर परिवर्तन आ सकता है। यह सामान्य धर्म, यदि इस देश के मानवजीवन की पद्धति बन जाये तो बहुत सारे अनिष्टों का अन्त आ जाय । असंख्य समस्याएँ सुलझ जायें। विकास नहीं पर विनाश है चौतरफ : __परन्तु जब तक धर्म और राज्य का आपस में सम्बन्ध स्थापित नहीं हो तब तक यह कल्पना साकार नहीं हो सकती है। जब तक समाजनीति और राजनीति में 'मानवजीवन' केन्द्रबिन्दु नहीं बनेगा तब तक यह अपूर्व परिवर्तन संभव नहीं है । 'देश की प्रगति', 'राष्ट्र का विकास', 'दुनिया के साथ कदम
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