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प्रवचन-५२ परिवार के साथ अपने महल में चला गया | सेठ का परिवार भी प्रसन्न हो गया था। नगर में भी सेठ की प्रशंसा होने लगी थी।
राजा की आँखों के सामने नगरश्रेष्ठि के वे तीन कमरे आते रहते हैं। 'यदि यह संपत्ति मेरी तिजोरी में आ जाय तो? मैं भारत का सबसे बड़ा राजा बन जाऊँ । सैन्य बढ़ा सकूँ, शस्त्र बढ़ा सकूँ और दूसरे राज्यों पर विजय पा सकूँ। सेठ क्या करेगा इतनी सारी संपत्ति का? परन्तु उसकी संपत्ति मेरे पास कैसे आ सकती है? यदि छीन लूँ तो तो राज्य में.... प्रजा में मेरी बदनामी होगी। यदि सेठ के पास से माँग लूँ तो सीधे सीधे तो वह देनेवाला नहीं है। क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आता है।' ___ संध्या के समय राजा विचारमग्न होकर बैठा था। वहाँ उसका महामंत्री पहुँचा मिलने के लिए। राजा को विचारमग्न देखकर महामंत्री ने पूछा : 'महाराजा, आज ऐसी कौन-सी चिन्ता है आपको, कि आप इतने सोच-विचार में पड़ गये हैं?' राजा ने मंत्री को अपने मन की बात बता दी। महामंत्री के मन में राज्य का या प्रजा का हित बसा ही नहीं था। वह तो अपना स्वार्थ साधने में तत्पर था। राजा की बात न्याययुक्त हो या अन्याययुक्त हो, महामंत्री राजा की बात को मानकर चलता था। राजा भी महामंत्री की ही बात मानता था।
महामंत्री ने राजा से कहा : 'महाराजा, नगरश्रेष्ठि की संपत्ति राज्य के भंडार में आ जायेगी और आपकी बदनामी नहीं होगी, वैसा उपाय मैंने मन में सोच लिया। राजा ने मंत्री से कहा : 'जल्दी बताओ वह उपाय, जिससे मेरे मन को शान्ति हो।'
मंत्री ने कहा : 'महाराजा, कल प्रातः जब नगरवेष्ठि राजसभा में आये तब आप उनको कहना कि 'सेठ, कल आपकी संपत्ति देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई है। मेरे राज्य में आप जैसे कुबेर भंडारी रहते हैं, इस बात का मुझे गर्व है। परन्तु मेरे मन में एक दूसरा विचार आया...।' नगरश्रेष्ठि प्रशंसा सुनकर खुशी से झूम उठेगा। तत्काल वह भी बोलेगा, ‘महाराजा, दूसरा कौन-सा विचार आया, फरमाइये...।' तब आप कहना : ‘अपार संपत्ति का मालिक बुद्धिमान् होना चाहिए | बुद्धिमान् व्यक्ति ही अपनी संपत्ति की सुरक्षा कर सकता है। हालाँकि आप बुद्धिमान हैं, फिर भी मैं आपकी बुद्धि की परीक्षा करना चाहता हूँ। आप मेरे दो प्रश्नों का उत्तर देंगे, सही उत्तर देंगे तो मैं मानूँगा कि आप बुद्धिमान् हैं। यदि सही उत्तर नहीं देंगे तो मानूँगा कि आप बुद्धिमान् नहीं हैं,
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