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प्रवचन-५४ कोई भय नहीं होता था। फिर भी कभी-कभी शत्रुराजा वैसे स्थानों पर भी हमला कर देते थे। __ आप लोगों को यदि निर्भयता से और निश्चितता से जीवन जीना है तो ऐसे एकान्त के स्थानों में नहीं रहना चाहिए। वैसे, ऐसे स्थानों में भी नहीं रहना चाहिए कि जहाँ मकानों की भीड़ हो! ऐसी संकरी गलियाँ हों कि जहाँ 'फायर-ब्रिगेड'-दमकल भी नहीं आ सके। एक घर में आग लगे तो पूरी लाइन ही जलकर साफ हो जाय और जहाँ अग्निशामक दमकल भी नहीं पहुँच सके।
दूसरी बात, अत्यन्त निकट-निकट घर होने से घर की शोभा भी नहीं बनती है। घर की बातें पासवाले सुनते रहते हैं। उनकी बातें आप सुनते रहोगे....! एक-दूसरे की गुप्त बातें सुनने से कभी संबंध भी बिगड़ते हैं, झगड़े भी होते हैं और निन्दाएँ होती रहती हैं। बंबई जैसे बड़े शहरों में गरीब और मध्यम कक्षा के लोग जो चालों में रहते हैं, पास-पास खोलियों में रहते हैं-वहाँ यही वातावरण देखने को मिलता है।
आप लोग किस दृष्टि से मकान की पसंदगी करते हो? मात्र सुखसुविधाओं की दृष्टि से और आर्थिक दृष्टि से यदि मकान की पसंदगी करते हो तो पारिवारिक जीवन में अनेक समस्याएँ पैदा हो जायेंगी। पास-पड़ोस कैसा है-वह भी महत्त्वपूर्ण बात है। यदि पड़ोसी स्वधर्मी होंगे और शीलवान् होंगे तब तो चिन्ता की बात नहीं, परन्तु यदि पड़ोसी विधर्मी होंगे और शीलसदाचार के पक्षपाती नहीं होंगे तो अनेक अनर्थ पैदा हो जायेंगे। पड़ोसी की पसंदगी सोच-समझकर करो :
सभा में से : हम लोग तो ऐसा कुछ नहीं देखते! हम देखते हैं सुखसुविधाएँ, अनुकूलताएँ और आर्थिक दृष्टि से सस्ता मकान! पड़ोस भी नहीं देखा जाता!
महाराजश्री : तो आप निर्भयता से नहीं जी सकेंगे। पारिवारिक शीलसुरक्षा भी नहीं रहेगी। आर्थिक दृष्टि से नुकसान हो सकता है और शीलसदाचार की दृष्टि से भी नुकसान हो सकता है। आप लोगों को गंभीरता से सोचना होगा। नया मकान बनाते समय, किराये का मकान लेते समय, आपको ये बातें अवश्य देखनी चाहिए। पड़ोसी का ख्याल तो विशेष करना चाहिए । अयोग्य और विधर्मी पड़ौसी के कारण, कई परिवारों में अनेक दूषण प्रविष्ट हो गये हैं।
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