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प्रवचन -५२
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इसलिए आप अपनी संपत्ति की सुरक्षा नहीं कर पाओगे । अतः आपकी संपत्ति राज्य की तिजोरी में जमा हो जायेगी । '
राजा तो मंत्री का उपाय सुनकर नाच उठा । राजा ने कहा : 'वे दो प्रश्न तो बता दो।' मंत्री ने कहा : 'पहला प्रश्न आप पूछना कि : दुनिया में ऐसा कौन-सा तत्त्व है कि जो निरंतर बढ़ता जाता है ? और दूसरा प्रश्न है : दुनिया में ऐसी कौन-सी वस्तु है कि जो प्रतिक्षण घटती जाती है ?' बस, ये दो प्रश्न आप पूछना।
सेठ इन दो प्रश्नों के प्रत्युत्तर नहीं दे पायेगा ! इतने गहन और गंभीर हैं ये प्रश्न। प्रश्नों का उत्तर वह दे नहीं पायेगा और उसकी संपत्ति राज्य की तिजोरी में आ ही गई, समझ लो !'
राजा तो कल्पना की आँखों से सेठ की संपत्ति को अपने भंडार में देखने लगा! मानव स्वभाव की यही तो कमजोरी है ! भविष्य के स्वप्नों में खुश होना! राजा ने मान लिया कि मंत्री के बताये हुए प्रश्नों के उत्तर नगर श्रेष्ठि नहीं दे पायेगा और सेठ की सारी संपत्ति उसको मिल जायेगी ! मंत्री की भी यही कल्पना होगी कि राजा को सेठ की संपत्ति मिल जायेगी तो मुझे भी राजा मालामाल कर देगा!
दूसरे दिन राजसभा में जब नगरश्रेष्ठि आये, राजा महामंत्री के कहे अनुसार, नगरश्रेष्ठि से बात की और दो प्रश्न पूछ लिये। नगरश्रेष्ठि तुरन्त ही बात का मर्म समझ गये । सेठ ने कहा : 'महाराजा, मुझे प्रश्नों का उत्तर देने के लिए चौबीस घंटे का समय देने की कृपा करें। मैं कल राजसभा में आपके प्रश्नों का उत्तर प्रस्तुत कर दूँगा ।' राजा ने स्वीकृति दे दी, राजसभा का विसर्जन हुआ। नगरश्रेष्ठि की खुशी का भी विसर्जन हो गया था । 'राजा की नीयत बिगड़ गई है.... मेरी सारी संपत्ति हड़पने को तैयार हो गया है और इस कार्य में राजा को महामंत्री का सहयोग भी मिला हुआ लगता है, क्योंकि मेरे साथ बात करते करते राजा महामंत्री के सामने देखा करते थे। अब दूसरा कोई उपाय, संपत्ति को बचाने का मुझे तो नहीं सूझता है। इन दो प्रश्नों के उत्तर भी तो मेरे दिमाग में स्फुरायमान नहीं हो रहे हैं। घर जाऊँ, घरवालों के सामने सारी बात रख दूँ । यदि कोई बता देगा प्रश्न के उत्तर, तब तो ठीक है, इस समय बच जाऊँगा ।' सेठ के मन में कैसा पछतावा हो रहा होगा, राजा को अपनी संपत्ति बताने का ? परन्तु अब क्या करें ? राजा के विषय में अति विश्वास ही सेठ के दुःख का मूल था न !
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