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प्रवचन- ५४
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सुयोग्य जगह देखकर गृहनिर्माण करवाना चाहिए। यह नौवाँ सामान्य धर्म है। यह गृहस्थधर्म बताते वक्त ग्रंथकार को नजर में दो बातें विशेष महत्त्व को हैं :
१. निर्भयता और २. सदाचारों का पालन ।
पड़ौसी के आचार-विचार तुम्हारे से विपरीत होंगे तो तुम्हारे परिवार के आचार-विचार भी प्रदूषित होंगे....यदि लापरवाही रखो तो! प्रबल कामवासना इन्सान को इन्सान नहीं रहने देती है.... शैतान और हैवान बना डालती है।
मकान कितना भी बढ़िया हो, पर यदि एकदम एकांत में हो, पड़ोस में सदाचारी-संस्कारो वातावरण न हो तो वहाँ पर नहीं रहना चाहिए।
● केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, परन्तु कौटुम्बिक सुखशांति को दृष्टि से भी ये सारी बातें सोचनी जरूरी है.... अनिवार्य है। कुसंग, गलत सोहबत बड़ी ही खराब चीज है !
प्रवचन : ५४
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परम कृपानिधि, महान् प्रज्ञावंत आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ने, स्वरचित ‘धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में क्रमिक मोक्षमार्गका काफी सुन्दर प्रतिपादन किया है। उन्होंने प्रारंभ किया है गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करके । ३५ प्रकार के सामान्य धर्म बताये हैं । ये ३५ प्रकार के धर्म, मानवजीवन की नींव हैं। बुनियाद हैं। सभी धर्मसाधनाओं की आधारशिला हैं । मानवजीवन के सभी कार्यकलापों को लेकर इतना श्रेष्ठ मार्गदर्शन दिया है ग्रन्थकार ने, कि इस मार्गदर्शन के अनुसार जीवनपद्धति का निर्माण किया जाये तो परिवार में से, समाज में से और गाँवनगर में से अनेक दूषण दूर हो जायँ । प्रजाजीवन निरापद बन जाय और सुराज्य प्रस्थापित हो जाय ।
मकान के लिए निर्भय स्थान पसंद करो :
योग्य स्थान देखकर गृहनिर्माण करना चाहिए, यह नौवाँ सामान्य धर्म बताया है। सद्गृहस्थ को कहाँ रहना चाहिए, कैसे मकान में रहना चाहिए और कैसे लोगों के बीच रहना चाहिए, यह बड़ी महत्त्वपूर्ण बात है । यह गृहस्थ धर्म बताते हुए ग्रन्थकार की दृष्टि में दो बातें प्रमुख रही हैं :