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प्रवचन- ५२
छोटी
बहू
ने रास्ता बताया :
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४०
सेठ घर पर आये, मुँह पर उदासी छायी हुई थी। भोजन भी नहीं किया सेठ ने । परिवार को इकठ्ठा कर के सारी बात बता दी, जो राजसभा में हुई थी। सब एक-दूसरे के मुँह देखने लगे। सबको आपत्ति के काले घनघोर बादल नजर आने लगे। सेठ ने पूछा : 'बोलो, महाराजा के दो प्रश्नों के उत्तर किसी को आते हैं?' सबकी बुद्धि कुंठित हो गई थी, किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था। सब ने आपना-अपना सिर हिलाकर मना कर दिया। सबसे छोटी पुत्रवधू मौन थी । नगरश्रेष्ठि ने उससे कहा : 'बेटी, तेरी बात मैंने नहीं मानी और यह बड़ी आपत्ति आयी.... | बेटी, क्या राजा के दो प्रश्नों के उत्तर हैं तेरे पास?' छोटी बहू ने कहा : 'पिताजी, आप चिन्ता नहीं करें, इन दो प्रश्नों के जवाब मैं स्वयं राजसभा में आकर दे दूँगी । सही जवाब दे दूँगी!'
सेठ ने कहा : ‘परन्तु राजा ने मेरे पास प्रश्न के उत्तर माँगे हैं न?' बहू ने कहा : 'आप कह देना महाराजा को कि ऐसे छोटे-छोटे प्रश्नों के उत्तर मैं नहीं देता, ऐसे प्रश्न के उत्तर तो मेरी सबसे छोटी पुत्रवधू दे देगी! आपके राजसभा में जाने के बाद मैं राजसभा में आऊँगी।'
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दूसरे दिन नगरश्रेष्ठि राजसभा में पहुँचे। वे प्रसन्नमुद्रा में थे। राजा ने कहा : 'सेठजी, मेरे प्रश्नों के उत्तर लाये क्या ?' सेठ ने कहा : 'महाराजा, आपको प्रश्न के उत्तर अभी मिल जायेंगे। मेरी छोटी पुत्रवधू आपके प्रश्नों के उत्तर दे देगी।' राजा ने कहा : 'आप नहीं दोगे उत्तर क्या ? ' सेठ ने कहा : 'ऐसे छोटेछोटे प्रश्नों के उत्तर मैं नहीं देता हूँ! कभी मेरे लड़के देते हैं, कभी मेरे लड़कों की बहुएँ दे देती हैं।'
राजा की अक्ल ठिकाने आ गई :
राजा ने मंत्री के सामने देखा । मंत्री सेठ के सामने देख रहा था उतने में तो छोटी पुत्रवधू ने राजसभा में प्रवेश किया। सारी राजसभा उसके सामने देखने लगी। एक हाथ में दूध का प्याला और दूसरे हाथ में हरा घास लिये पुत्रवधू राजसभा में आयी थी ! उसने महाराजा को नमन किया और दूध का प्याला राजा के सामने रखा। हरा घास मंत्री के सामने रखा। राजा आश्चर्य से देखता रहा और पूछा : 'अरे बेटी, यह तूने क्या किया ? तू क्या कहना चाहती है ?'