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प्रवचन-५३ निर्भय एव निश्चित व्यक्ति ही आत्मविकास कर सकता है : ___ मैं जानता हूँ आज के युग के प्रवाह को! आजकल आप लोगों को धनवानों का संपर्क-सम्बन्ध ज्यादा अच्छा और फायदेमंद लगता है। सत्ताधीशों का सम्बन्ध ज्यादा प्यारा लगता है! क्योंकि समाज में ऐसे लोगों की महिमा होती है। 'इनका तो भाई, बिरला के साथ अच्छा सम्बन्ध है, इनका तो भाई, प्राइम मिनिस्टर के साथ अच्छे ताल्लुकात हैं।' श्रीमन्तों से और सत्ताधीशों से सम्बन्ध रखनेवालों के प्रति लोग आश्चर्य से देखते हैं न? कुछ भय से भी देखते होंगे? 'इस व्यक्ति से दूर रहो, सरकार में उसकी जान-पहचान है, हेरान कर देगा कभी!' अथवा तो 'इसके तो बड़े बड़े उद्योगपतियों के साथ सम्बन्ध हैं, अपने साथ तो बोलता ही नहीं, बड़ा अभिमानी हो गया है....कोई बात नहीं, समय आने दो, उसको भी देख लेंगे।' यदि व्यक्ति कोई न कोई विशेष गुणवाला नहीं होता है तो दुनिया के दिल में उसका स्थान नहीं बनता है और व्यक्ति निर्भय-निश्चित होकर आत्मविकास नहीं कर पाता।
समाज में गुणवानों का, विशिष्ट गुणों से समृद्ध पुरुषों का मूल्यांकन होना चाहिए। जो गुणवान् होते हैं और गुण के पक्षपाती होते हैं, ऐसे पुरुषों का मूल्यांकन होने से लोगों को गुणवान् बनने की प्रेरणा मिलती है। क्योंकि धनैषणा से भी मानैषणा ज्यादा होती है मनुष्य में! मान के लिए मनुष्य धन का त्याग कर देता है। इसलिए तो संघ-समाज और नगर के कुछ सत्कार्य करवाने के लिए लोग बड़े दाताओं को, समारोह का आयोजन कर अभिनन्दनपत्र देते हैं। दाताओं की प्रशस्ति अखबारों में छपती है। उनके फोटो छपते हैं!
यह दुनिया देखती है और दुनिया के कुछ धनवानों को दान देने की प्रेरणा मिलती है! 'दान' भी एक विशेष गुण है। इसलिए दानी पुरुषों का मूल्यांकन होना चाहिए। वैसे, शीलवानों का-ब्रह्मचारियों का भी मूल्यांकन होना चाहिए। मूल्यांकन का अर्थ मात्र अभिनन्दन-पत्र देना, इतना नहीं करने का है। मूल्यांकन यानी उनकी प्रशंसा, प्रसंगोपात उनकी आवभगत और उनका आदर-सत्कार | तपश्चर्या भी विशिष्ट गुण है। तपस्वियों का बहुमान करते हो न? इसलिए तपस्वियों की संख्या बढ़ती जा रही है! गुणप्रशंसा से, गुणवानों की प्रशंसा से उस गुण का विशेष प्रसार होता है। आज के युग में दो गुणों का और दो गुणवालों का मूल्यांकन होता है विशेष रूप से | दान और तप! दानी का और तपस्वी का विशेष सार्वजनिक सम्मान होता है, तो दान बढ़ा और तप बढ़ा!
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