________________
मध्य और अंत में विशिष्टता के साथ बार-बार उन्हीं शब्दों का पुनः - पुनः उच्चारण होता है, वे गमिक श्रुत कहलाते है। जैसे - उत्तराध्ययन सूत्र के दसवें अध्याय में 'समयं गोयम मा पमाइए' यह पद प्रत्येक गाथा
के चतुर्थ चरण (पाद) में उल्लेखित है । प्र.43 अगमिक श्रुत किसे कहते है ? उ. जिसके पाठों की समानता न हो, जिस श्रुतागमों में पाद (चरण) की
पुनरावर्ति नही होती है, उन्हें अगमिक श्रुत कहते है। जैसे - दृष्टिवाद । प्र.44 अंगप्रविष्ट सूत्र में कितने आगम गमिक श्रुत है और कितने
अगमिक श्रुत है ? प्रथम ग्यारह आगम गमिक और अंतिम आगम अगमिक है । गमिक श्रुत - 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. भगवती 6. ज्ञाता धर्म कथा 7. उपासक दशा 8. अन्तकृत्दशा 9. अनुत्तरोपपातिकदशा 10. प्रश्नव्याकरण 11. विपाक सूत्र ।
अगमिक श्रुत - दृष्टिवाद । प्र.45 सूत्रों (आगम) का अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य भेद करने का मुख्य ... हेतु क्या है ? . उ. . विभेद करने का मुख्य हेतु वक्ता का भेद है। प्र.46 पूर्वो में सम्पूर्ण सूत्रों का समावेश हो जाता है, फिर अंग व अंग
बाह्य सूत्रों की अलग से रचना क्यों की ? . सृष्टि के समस्त जीवों के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम भिन्न - भिन्न प्रकार का होता है । कोई अल्प बुद्धि वाले होते है तो कोई तीव्र
प्रज्ञा वाले । जो अल्पबुद्धि वाले होते है वे अति गंभीर अर्थ युक्त पूर्वो का | ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
15
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org