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त्रिपदी को आधार बनाकर ही गणधर भगवंत सम्पूर्ण द्वादशांगी की रचना
करते है इसलिए इसे मातृका पद कहते है। . प्र.38 जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण म. के अनुसार अंग प्रविष्ट आगम की
क्या विशेषताएँ होती है ? उ.. 1. गणधर कृत होते है । 2. गणधर द्वारा प्रश्न किये जाने पर तीर्थंकर ... द्वारा प्रतिपादित होते है । 3. ध्रुव-शाश्वत सत्यों से सम्बन्धित,
सुदीर्घकालीन होते है । (विशेषावश्यक भाष्य गाथा 552 ) प्र.39 अंग प्रविष्ट आगम कितने व कौनसे है ?
अंग प्रविष्ट आगम बारह है - 1. आयारो (आचारांग) 2. सुअगडो (सूत्रकृतांग) 3. ठाणं (स्थानांग) 4. समवाओ (समवायांग) 5. विवाहपन्नत्ती (भगवती) 6. नायाधम्मकहाओ (ज्ञाता धर्म कथा) 7. उवासगदसाओं (उपासक दशा) 8. अन्तगडदशाओ (अन्तकृत्दशा) 9. अणुत्तरो ववाइदसाओ (अनुत्तरोपपातिकदशा) 10. पण्हावागरणं (प्रश्नव्याकरण)
11. विवाग सुअं (विपाक सूत्र) 12. दिट्ठिवाओ (दृष्टिवाद) । प्र.40 वर्तनाम काल में कौनसा अंग प्रविष्ट आगम उपलब्ध नही है ? उ. अंतिम दृष्टिवाद नामक अंग प्रविष्ट आगम वर्तमान में उपलब्ध नही है। प्र.41 नंदी सूत्र में अंग प्रविष्ट आगम को कितने भागों में विभाजित किया
गया है ? उ. दो भागो में - 1. गमिक श्रुत 2. अगमिक श्रुत ।। प्र.42 गमिक श्रुत किसे कहते है ? उ. नंदी सूत्र के चूर्णिकार के अनुसार - "आईमज्झऽवसाणे वा
किंचिविसेसजुत्तं ...... भण्णइ ।" अर्थात् जिस श्रुत के आदि ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
आगमों के भेद-प्रभेद
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