Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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अंगिरस्
प्राचीन चरित्रकोश
अंगिरस्
अंगिरा, गर्ग, बृहस्पति, भरद्वाज तथा सैत्य इन पांच भारद्वाज, शैशिरेय, शौग तथा हुत, ये उपगोत्रकार प्रवरों के हैं।
अंगिरा, बृहस्पति, भारद्वाज, मौद्गल्य तथा शैशिर इन उरुक्षय, उर्व, कपीतर, कलशीकंठ, काट्य, कारीरथ, | पांच प्रवरों के हैं (मत्स्य. १९६)। कुसीदकि, जलसंधि, दाक्षि, देवमति, धान्यायनि, पतंजलि, | अंगिरस वंश-(इसे अथर्वन् वंश भी कहा जाता बिंदु, भरद्वाजि, भावास्थायनि, भूयसि, मदि, राजकेशिन् , लध्विन्वौषडि, शंसपि, शक्ति, शालि, सोबुधि, व स्वस्तितर, | पथ्या-धृष्णि-सुधन्वन्-ऋषभः । ये सब उपगोत्रकार अंगिरा, उरुक्षय तथा दमबाह्य इन| सुरूपा-१ आधासि, २ आयु, ३ मृत, ४ दनु, तीन प्रवरों के हैं।
५ दक्ष, ६ प्राण, ७ बृहस्पति-भारद्वाज, ८ सत्य, ९ हविष्य __अनेह (अनेहि ), आर्षिणि (आर्पिणि ), गाय॑हरि (गर्गिहर ), गालव (गालवि), गौरवीति, चेनातकि, तंडि,
स्वराट-१ अयास्य का कितव, २ उतथ्य का शरद्वान, तैलक, त्रिमार्टिदक्ष, नारायणि (परस्परायणि ), मनु, |
| ३ उशिज का दीर्घतपस् , ४ गौतम, वामदेव तथा वामदेव संकृति तथा संबंधि, ये सब उपगोत्रकार अंगिरा, गौरवीति | का बृहदुक्थ । तथा संकृति इन तीन प्रवरों के हैं।
इनके अन्य भेद कात्यायनि, कुणेराणि, कौत्स, पिंग, भीमवेग, माद्रि, | अयास्य, आर्षभ, उतथ्य, उशिज, कण्व, कपि,- कितव, मौलि, वात्स्यायनि, शाश्वदर्भि, हंडिदास तथा हरितक, ये | गर्ग, भारद्वाज, भरद्वाज, मुद्गल, रथीतर, रुक्ष, विष्णुवृद्ध, सब उपगोत्रकार अंगिरा. जीवनाश्व (युवनाश्व) तथा | सांकृति, हरित (ब्रह्माण्ड. ३. १. १०४-११२)।। बृहदश्व इन तीन प्रवरों के हैं।
__अंगिरस गोत्रीय मंत्रकार . बृहदुक्थ तथा वामदेव, ये उपगोत्रकार अंगिरा,
वायु. ५९.९८-१०२;-अंगिरस् , अजमीढ़, अंबरीष, बृहदुक्थ तथा वामदेव इन तीन प्रवरों के हैं।
| अमृत, आयाप्य, आहार्य, उतथ्य, ऋषभ, औगज, __ अंगिरा, पुरुकुत्स तथा सदस्यु ये तीन प्रवर कुत्सों
कक्षीवान् , कण्व, गाय, सदस्यु, दीर्घतमस् , पुरुकुत्स, के है।
पृषदश्व, पौरुकुत्स, बलि, बाष्कलि, बृहदुस्थ, भरद्वाज, अंगिरा, विरूप, रथीतर ये तीन प्रवर रथीतरों के है । | भारद्वाज, मांधाता, मुद्गल, युवनाश्व, वाजश्रवस् , वामदेव, कर्तण (कर्मिण), जतृण, पुत्र तथा विष्णुसिद्धि, वैरपरा- विरूप, वेधस, शेनी, संहृति, संदस्युमान् , सुवित्ति । यण तथा शिवमति ये उपगोत्रकार अंगिरा, विरूप तथा
___ मत्स्य. १४५.१०१.१०५; - अंगिरस् , अजमीढ़, , वृषपर्व इन तीन प्रवरों के हैं। .
| अपस्यौष, अंबरीष, अस्वहार्य, उकूल, उतथ्य, ऋषिज, ___ तंबि, मुद्गल, सात्यमुनि तथा हिरण्य इन उपगोत्रकारों के | कक्षीवान् , कवि, काव्य, कृतवान्, गर्ग, गुरुवीत, त्रित, प्रवर अंगिरा, मत्स्यदग्ध तथा मुद्गल ।
दीर्घतमस् , पुरुकुन्स, पृषदश्व, बृहत् , भरद्वाज, मांधाता, ___ अनिजिह्व, अपाग्नेय, अश्वयु, देवजिह्व, परण्यस्त (ग), मुद्गल, युवनाश्व, लक्ष्मण, वाजिश्रव, वामदेव, विरूप, विमौद्गल, विराड़प (बिडालज) तथा हंस जिह्व इनके प्रवर | वैद्यग, शरद्वान् , शुक्ल, स्मृति संस्कृति, सदस्यवान् , अंगिरा, तांडि तथा मौद्गल्य ।
सुचित्ति, स्वश्रव। अपांडु, कटु (कंकट), गुरु, नाडायन, नारिन् , प्रागावस । ब्रह्माण्ड, २.३२-१०७-१११; - अंगिरस् , अजमीढ़, (प्रागाथम), मरण (मरणाशन), मर्कटप (कटक), मार्कड | अंबरीष, अयास्य, आहार्य, उतथ्य, असिज, कक्षीवान् , (मार्कट), शाकटायन, शिव तथा श्यामायन ये उपगोत्रकार | कण्व, कपि, ऋतवाच , गर्ग, चक्रवती, तुक्षय, त्रसदस्य, अंगिरा, अजमीढ तथा काट्य इन तीन प्रवरों के हैं। दीर्घतमस् , पुरुकुत्स, पौरुकुत्स, बाष्कलि, बृहदुक्त्थ,
कपिभू , गार्ग्य तथा तित्तिरि ये अंगिरा, कपिभू तथ। | भरद्वाज, मांधाता, मुद्गल, युवनाश्व, वाजश्रवस् , वामदेव, तित्तिरि इन प्रवरों के हैं।
विरूपाक्ष, वृषादर्भ, शिनि, संकृति, दस्युमान् , सनद्वाज । ऋक्ष, ऋषिमित्रवर, ऋषिवान्मानव, भरद्वाज ये सब (आंगिरस तथा वसुरोचिषु देखिये)। अंगिरा, ऋषिमैत्रवर, ऋषिवान्मानव, भरद्वाज तथा बृहस्पति । २. उत्तानपादवंशीय उल्मुक को पुष्करिणी से उत्पन्न इन पांच प्रवरों के हैं।
| पुत्र ।