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चक्खु-सिणेहे सुहलो दंतसिणेहे य मोयणं मिट्ट। तय-णहेण उ सोक्खं णह-जेहे होइ परम-धणं ॥
-कुवलयमाला, पृ. १३१, अनु. २१६ कण्ठ, पीठ, लिंग और जांघ का ह्रस्व-लघु होना शुभ है। हाथ और पैर का दीर्घ होना भी शुभ फल का सूचक है । आँखों के चिकने होने से व्यक्ति सुखी, दाँतों के चिकने होने से मिष्ठान्नप्रिय, त्वचा के चिकना होने से सुख एवं नाखूनों के चिकने होने से अत्यधिक धन की प्राप्ति होती है। .. इस प्रकार नेत्र, नाखून, दाँत, जांघ, पैर, हाथ आदि के रूप-रंग, स्पर्श, सन्तुलित प्रमाण-वज़न एवं आकार-प्रकार के द्वारा फलादेश का निरूपण किया गया है । प्रमुख ज्योतिविद् और उनके ग्रन्थों का परिचय
वराहमिहिर-यह इस युग के प्रथम धुरन्धर ज्योतिर्विद् हुए, इन्होंने इस विज्ञान को क्रमबद्ध किया तथा अपनी अप्रतिम प्रतिभा द्वारा अनेक नवीन विशेषताओं का समावेश किया। इनका जन्म ईसवी सन् ५०५ में हुआ था। बृहज्जातक में इन्होंने अपने सम्बन्ध में कहा है
आदित्यदासतनयस्तदवाप्तबोधः काम्पिल्लके , सवितृलब्धवरप्रसादः ।
आवन्तिको मुनिमतान्यवलोक्य सम्यग्धोरां वराहमिहिरो रुचिरां चकार ॥ अर्थात्-काम्पिल्ल ( कालपी ) नगर में सूर्य से वर प्राप्त अपने पिता आदित्यदास से ज्योतिषशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की, अनन्तर उज्जैनी में जाकर रहने लगे और वहीं पर बृहज्जातक की रचना की। इनकी गणना विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में की गयी है। यह त्रिस्कन्ध ज्योतिषशास्त्र के रहस्यवेत्ता, नैसर्गिक कविता-लता के प्रेमाश्रय कहे गये हैं । इन्होंने ज्योतिषशास्त्र को जो कुछ दिया है, वह युग-युगों तक इनकी कीर्तिकौमुदी को भासित करता रहेगा।
___ इन्होंने अपने पूर्वकालीन प्रचलित सिद्धान्तों का पंचसिद्धान्तिका में संग्रह किया है । इसके अतिरिक्त बृहत्संहिता, बृहज्जातक, लघुजातक, विवाह-पटल, योगयात्रा और समाससंहिता नामक ग्रन्थों की रचना की है।
__ वराहमिहिर के जातक ग्रन्थों का विषय सर्वसामान्य, गम्भीर और मत-मतान्तरों के विचारों से परिपूर्ण है। बृहज्जातक में मेषादि राशियों की यवन संज्ञा, अनेक पारिभाषिक शब्द एवं यवनाचार्यों का भी उल्लेख किया है। मय, शक्ति, जीवशर्मा, मणित्थ, विष्णुगुप्त, देवस्वामी, सिद्धसेन और सत्याचार्य आदि के नाम आये हैं। इनकी संहिता भी अद्वितीय है, ज्योतिषशास्त्र में यों अनेक संहिताएँ हैं, पर इनकी संहिता-जैसी एक भी पुस्तक नहीं। डॉक्टर कन ने बृहत्संहिता की बड़ी प्रशंसा की है। वास्तविक बात तो यह है कि फलित ज्योतिष का इनके समान कोई अद्वितीय ज्ञाता नहीं हुआ है । यह निष्पक्ष ज्योतिषी और भारतीय ज्योतिष साहित्य के निर्माता माने जाते हैं ।
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