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हैं। ग्रन्थ को आद्योपान्त देखने से ज्ञात होता है कि यह संहिता-विषयक रचना है, होरा-सम्बन्धी नहीं। होरा जैसा कि इसका नाम है, उसके सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा गया है।
श्रीपति-यह अपने समय के अद्वितीय ज्योतिर्विद् थे । इनके पाटीगणित, बीजगणित और सिद्धान्तशेखर नाम के गणित ज्योतिष के ग्रन्थ तथा श्रीपतिपद्धति, रत्नावली, रत्नसार, रत्नमाला ये फलित ज्योतिष के ग्रन्थ हैं। इनके पाटीगणित के ऊपर सिंहतिलक नामक जैनाचार्य की एक 'तिलक' नामक टीका है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने ज्या खण्डों के बिना ही चापमान से ज्या का आनयन किया है
दोःकोटिभागरहिवामिहताः खनागचन्द्रास्तदीयचरणोनशरार्कदिग्भिः । ते व्यासखण्डगुणिता विहृताः फलं तु ज्यामिविनापि भवतो भुजकोटिजीवा ॥
___ इसकी रचनाशैली अत्यन्त सरल और उच्चकोटि की है। इन्हें केवल गणित का ही ज्ञान नहीं था, प्रत्युत ग्रहवेध क्रिया से भी यह पूर्ण परिचित थे। इन्होंने वेधक्रिया द्वारा ग्रहगणित की वास्तविकता अवगत कर उसका अलग संकलन किया था, जो सिद्धान्तशेखर के नाम से प्रसिद्ध है। ग्रह-गणित के साथ-साथ जातक और मुहूर्त विषयों के भी यह प्रकाण्ड पण्डित थे। इनका जन्म समय ईसवी सन् ९९९ बताया। जाता है।
श्रीधर-यह ज्योतिषशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान् थे। इनका समय दसवीं सदी का अन्तिम भाग माना जाता है। इन्होंने गणितसार और ज्योतिर्ज्ञानविधि संस्कृत भाषा में तथा जातकतिलक कन्नड़ भाषा में लिखे हैं। इनके गणितसार पर एक जैनाचार्य की टीका भी उपलब्ध है।
गणितसार में अभिन्न गुणक, भागहार, वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, भिन्न, समच्छेद, भागजाति, प्रभागजाति-भागानुबन्ध, भागमातृजाति, पैराशिक, सप्तराशिक, नवराशिक, भाण्ड-प्रतिभाण्ड, मिश्रकव्यवहार, भाव्यकव्यवहारसूत्र, एकपत्रीकरणसूत्र, सुवर्णगणित, प्रक्षेपकगणित, समक्रयविक्रयसूत्र, श्रेणीव्यवहार, क्षेत्रव्यवहार, खातव्यवहार, चितिव्यवहार, काष्ठव्यवहार, राशिव्यवहार, छायाव्यवहार आदि गणितों का निरूपण किया गया है। इसमें 'व्यासवर्गादशगुणात्पदं परिधिः' वाला परिधि आनयन का नियम बताया है। वृत्त क्षेत्र का क्षेत्रफल परिधि और व्यास के घात का चतुर्थांश बताया गया है, लेकिन पृष्ट फल के सम्बन्ध में कहीं भी उल्लेख नहीं है।
__ ज्योतिर्ज्ञानविधि प्रारम्भिक ज्योतिष का ग्रन्थ है । इसमें व्यवहारोपयोगी मुहूर्त भी दिये गये हैं। आरम्भ में संवत्सरों के नाम, नक्षत्रनाम, योगनाम, करणनाम तथा उनके शुभाशुभत्व दिये गये हैं। इसमें मासशेष, मासाधिपतिशेष, दिनशेष, दिनाधिपतिशेष आदि अर्थगणित की अद्भुत और विलक्षण क्रियाएँ भी दी गयी है। यों तो मासशेष आदि का वर्णन अन्यत्र भी है, इस ग्रन्थ के विषय एक नये तरीके से लिखे गये
भारतीय ज्योतिष
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