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जायें, उसी दिन उतने ही मिश्रमानकालिक इष्टकाल पर वर्षप्रवेश समझना चाहिए । प्रस्तुत उदाहरण में जन्मकालीन सूर्य ७।५।४११४१ है, यह मार्गशीर्ष कृष्ण १३ गुरुवार की रात को ५८।३ इष्टकाल पर मिल जाता है, अतः इसी दिन वर्षप्रवेश माना जायेगा।
वर्षकुण्डली का लग्न जन्मकुण्डली के लग्न के समान ही बनाया जाता है । यहाँ पर लग्नसारणी के अनुसार लग्न का उदाहरण दिखलाया जा रहा है
५८।३ वर्षप्रवेश का इष्टकाल ४०।४३।१६ सारणी में प्राप्त सूर्यफल ३८।४६।१६ योगफल
इस योगफल को पुनः लग्नसारणी में देखा तो ६।२३ का फल ३८॥३६।२३ और ६।२४ का ३८।४७।५२ मिला। अभीष्ट योगफल ३८।४६।१६ है; अतः इसे २३ और २४ अंश के मध्य का समझना चाहिए । कला, विकला को निकालने के लिए प्रक्रिया की
"३८।४७।५२, २४ अंश के फल में से ३८।३६।२३, २३ अंश के फल को घटाया
११०२९ सजातीय संख्या बनायी।
६०
६६० + २९ = ६८९ ३८१४६।१६, अभीष्ट योग फल में से ३८।३६।३२, २३ अंश के फल को घटाया
९।५३ सजातीय संख्या बनायी
५४० + ५३=५९३ यहाँ अनुपात किया कि ६८९ प्रतिविकला में ६० कला फल मिलता है तो ५९३ प्रति विकला में क्या ?
अर्थात् ५१ कला ३८ विकला। इस प्रकार वर्षप्रवेश का लग्न ६।२३।५।३८ हुआ।
वर्षप्रवेशकालीन इष्टकाल पर से ग्रहस्पष्ट जन्मकुण्डली के गणित के समान ही कर लेना चाहिए। नीचे गणित कर केवल ग्रहस्पष्ट चक्र लिखा जा रहा है । चतुर्थ अध्याय
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