Book Title: Bharatiya Jyotish
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 517
________________ स्थान में स्थित हो तो कन्या की प्राप्ति होती है। पंचम भाव का स्वामी लग्नेश या चन्द्रमा से इत्थशाल करता हो और शुभग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो पृच्छक को सन्तानलाभ होता है। लाभालाभ प्रश्न प्रश्नकालीन कुण्डली बनाने के अनन्तर विचार करना-यदि लग्नेश और अष्टमेश दोनों आठवें स्थान में हों तथा ये दोनों एक ही द्रेष्काण में स्थित हों तो पृच्छक को अवश्य लाभ होगा। प्रश्नकाल में लग्न में सौम्य ग्रहों का वर्ग हो तो ग्रहभाव की अपेक्षा शुभ फल समझना चाहिए । लग्न में चन्द्रमा और लाभभाव में गुरु या शुक्र हो तथा लाभभाव के ऊपर शुभग्रहों की दृष्टि हो तो पृच्छक को विशेष रूप से लाभ होता है । लग्नेश और लाभेश एक साथ हों तो भी लाभ होता है। लग्नेश और लाभेश का इत्थशाल योग होने पर भी लाभ होता है। यदि लग्नेश चन्द्रमा से दृष्ट होकर लाभ स्थान में स्थित हो तो दूसरों को सहायता से लाभ होता है। दशमेश और चन्द्रमा का इत्थशाल होने पर भी लाभ की प्राप्ति होती है। कर्माधिपति का लग्नेश के साथ रहना, उसके साथ इत्थशाल होना एवं कर्माधिपति और लाभेश का योग होना भी लाभ का सूचक है। लाभेश और अष्टमेश का योग और इत्थशाल होने पर भी लाभ नहीं होता। जिस-जिस स्थान पर चन्द्रमा की दृष्टि हो उस-उस स्थान से पुण्य की वृद्धि तथा कर्म की सिद्धि होती है। अष्टम भाव पर चन्द्रमा की दृष्टि रहने से लाभ नहीं होता तथा धर्म-कर्म का भी ह्रास होता है । लग्नेश षष्ठ या अष्टम में हो तो लाभ नहीं होता तथा नाना प्रकार के कष्ट भी सहन करने पड़ते हैं। लग्नेश द्वादश भाव में स्थित हो तो व्यय अधिक होता है और लाभ कुछ नहीं। पृच्छक की प्रश्नकुण्डली में लग्न में बुध स्थित हो और चन्द्रमा की दृष्टि हो अथवा पापग्रहों की बुध पर दृष्टि हो तो शीघ्र ही लाभ होता है । प्रश्नलग्न में जो राशि हो उसकी कला बनाकर उस पिण्ड को छाया के अंगुलों से गुणा करे और सात से भाग दे तो जो शेष बचे उसे एक स्थान में रखे । यदि शुभग्रह का उदयांक हो तो प्रश्नकर्ता के कार्य की सिद्धि कहना और अन्य ग्रह का उदयांक हो तो कार्यसिद्धि का अभाव समझना चाहिए । वाद-विवाद या मुक़दमे का प्रश्न विवाद के प्रश्न में यदि लग्न में पापग्रह हो तो प्रश्नकर्ता निश्चयतः उस मुक़दमा में विजयी होगा। सप्तम भाव में नीच ग्रह के रहने से मुक़दमे में विजय लाभ नहीं होता। लग्न और सप्तम में क्रूर ग्रहों के रहने से मुक़दमा वर्षों चलता है और कई वर्ष के पश्चात् वादी की विजय होती है। लग्नेश, पंचमेश और शुभग्रह केन्द्र में हों तो सन्धि हो जाती है । लग्नेश, सप्तमेश और षष्ठेश छठे स्थान में हों तो परस्पर कलह ४९६ भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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