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चाहिए। बालक के अभाव में प्रश्नकर्ता के मुख से ही पुष्पादि का नाम ग्रहण करना चाहिए। जो पृच्छक का प्रश्नवाक्य हो उसके स्वर और व्यंजनों का विश्लेषण कर निम्न प्रकार से पिण्ड बना लेना चाहिए।
अ = १२, आ=२१, इ = ११, ई% १८, उ = १५, ऊ = २२, ए = १८, ऐ = ३२, ओ=२५, औ=१९, अं = २५, क% १३, ख=११, ग= २१, घ = ३०, ङ = १०, च = १५, छ =२१, ज=२३, झ = २६, न = २६, ट=१०, 8 = १३, ड = २२, ढ = ३५, ण = ४५, त = १४, थ = १८, द = १७, ध = १३, न = ३५, प=२८, फ=१८, ब = २६, भ = १७, म = ८६, य = १६, र=१३, ल = १३, व= ३५, श = २६, ष = ३५, स = ३५, ह = १२ ।
मात्रा-वर्ण ध्रुवांक चक्र
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२८
स
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लाभालाभ के प्रश्न में पिण्ड-संख्या में ४२ क्षेपक का अंक जोड़ देना चाहिए और जो योगफल आये उसमें तीन का भाग देने पर १ शेष बचे तो पूर्ण लाभ, २ शेष बचे तो अल्प लाभ और शून्य शेष बचे तो हानि कहना चाहिए।
उदाहरण-गोपाल प्रातःकाल लाभालाभ का प्रश्न पूछने के लिए आया, इसलिए उससे किसी फूल का नाम पूछा, उसने चमेली का नाम लिया। 'चमेली' प्रश्नवाक्य में च् + अ + म् + ए + ल् + ई ये स्वर और व्यंजन हैं। मात्रा और वर्ण ध्रुवांक पर से पिण्ड बनाया
च् = १५, अ = १२, म् = ८६, ए = १८, ल =१३, ई =१८, १५ + १२ + ८६ + १८ + १३ + १८ = १६२ पिण्डांक, इसमें क्षेपांक जोड़ा । १६२ + ४२ =२०४ : ३= ६८ लब्ध, शेष ० । यहाँ शून्य शेष रहा है, अतएव हानि फल समझना चाहिए।
जय-पराजय-पिण्डांक में ३४ जोड़कर तीन का भाग देने से १ शेष रहे तो जय, २ शेष में सन्धि और शून्य में पराजय कहनी चाहिए ।
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भारतीय ज्योतिष
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