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२-जन्मलग्न, प्रश्नलग्न और जन्मकुण्डली के अष्टमेश की राशि; इन तीनों को जोड़ने से जो योगफल आवे उसमें अष्टमेश की राशि से गुणा करना चाहिए और गुणनफल में प्रश्न-समय में सूर्य जिस नक्षत्र पर हो उसकी संख्या से भाग देना चाहिए। सम शेष में मृतक की जन्मपत्री और विषम शेष में जीवित की जन्मपत्री होती है।
उदाहरण-जन्मल. १२+७ प्रश्नल. + अष्टमेश रा. ९=१२ +७+ ९% २८ २८४९% २५२, प्रश्नसमय में सूर्य ५ राशि का है अतः ५ से भाग दिया तो२५२५-५० लब्ध २ शेष । सम शेष रहने से मृतक की जन्मपत्री समझनी चाहिए।
१-पुरुष-स्त्री की जन्मपत्री का विचार-राहु और सूर्य जिस राशि पर हों उस राशि की अंकसंख्या तथा लग्नांक संख्या को जोड़कर ३ का भाग देने से शून्य और १ शेष में स्त्री की और २ शेष में पुरुष की जन्मपत्री होती है।
- उदाहरण-राहु कन्या राशि, सूर्य कर्क राशि में और लग्न धनु राशि है। ६+४+ ९ = १९:३६ लब्ध १ शेष । स्त्री की जन्मपत्री है ।
२-जन्मलग्न को छोड़ अन्यत्र विषम स्थान में शनि स्थित हो और पुरुषग्रह बलवान् हो तो पुरुष की कुण्डली; इससे विपरीत हो तो स्त्री की कुण्डली समझनी चाहिए।
दम्पति की मृत्यु का ज्ञान-स्त्री-पुरुष में किसकी मृत्यु पहले होगी, इसका विचार करने के लिए नामाक्षर संख्या को तिगुना करना और मात्रा संख्या को चौगुना कर, दोनों संख्याओं को जोड़कर ३ का भाग देने पर १ शून्य शेष रहे तो पुरुष की पहले मृत्यु और २ शेष रहे तो स्त्री की पहले मृत्यु होती है।
पुरुष-स्त्री की जन्मराशि-संख्या को जोड़कर ३ का भाग देने से • और १ शेष रहे तो पहले पुरुष की मृत्यु एवं २ शेष रहे तो पहले स्त्री की मृत्यु होती है। इस प्रकार प्रश्नों का फल निकाल लेना चाहिए।
इस प्रकार भारतीय ज्योतिष के व्यावहारिक सिद्धान्त वैदिक काल से आज तक उत्तरोत्तर विकसित होते चले आ रहे हैं। ऋग्वेद, कृष्ण यजुर्वेद, अथर्ववेद, शतपथ ब्राह्मण, मुण्डकोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद्, तैत्तिरीय ब्राह्मण, मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता, अनुयोगद्वार सूत्र एवं समवायांग आदि में प्राचीन काल में ही ज्योतिष की महत्त्वपूर्ण चर्चाएँ लिखी गयी हैं। मेरा विश्वास है कि भारतीय वाङ्मय का ऐसा एक भी ग्रन्थ नहीं है, जिसमें ज्योतिष का उपयोग न किया गया हो। यह विज्ञान निरन्तर विकसित होता हुआ अपनी प्रभारश्मियों को दर्शनादि शास्त्रों पर विकीर्ण करता रहा है। पंचम अध्याय
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