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४ संख्या आयी । इन दोनों में ९ का भाग दिया तो पहले स्थान में ७ संख्या शेष बची। अतः ७वीं तारा कन्या की हुई और दूसरी जगह ९ का भाग देने से चार शेष बचा। अतः वर की ४थी तारा हुई। इन दोनों को उपर्युक्त कोष्ठक में मिलाने से ११॥ गुण तारा का प्राप्त हुआ। इसी प्रकार सब जगह तारा मिला लेना चाहिए ।
योनि-ज्ञानविधि
अश्विनी, शतभिषा की अश्व योनि; स्वाति, हस्त की महिष योनि; पूर्वाभाद्रपद, धनिष्ठा की सिंह योनि; भरणी, रेवती की गज योनि; कृत्तिका, पुष्य की मेष ( मेढ़ा ) योनि; श्रवण, पूर्वाषाढ़ा की वानर योनि; उत्तराषाढ़ा, अभिजित् की नेवला योनि रोहिणी, मृगशिरा की सर्प योनि; ज्येष्ठा, अनुराधा की मृग योनि; मूल, आर्द्रा की श्वान योनि, पुनर्वसु, आश्लेषा की बिलाव योनि; पूर्वाफाल्गुनी, मघा की मूषक योनि; विशाखा, चित्रा की व्याघ्र योनि और उत्तराफाल्गुनी और उत्तराभाद्रपद की गो योनि होती है।
योनिवैर जानविधि
गो और व्याघ्र का, महिष और अश्व का, कुत्ता और मृग का, सिंह और गज का, वानर और मेढ़ा का, मूषक और बिलाव का, नेवला और सर्प का वैर होता है ।
। योनि | अश्व
महिष | सिंह
हस्ती मेष | वानर । नकुल |
स्वा.
अभि .
नक्षत्र
भ. रे.
पु. । कृ.
श्र. पू. षा.
पू. भा.
उ.षा.
4
योनि
गौ
श्वान बिल्ली मूषक | व्याघ्र __ मू. पुन. म. वि. __आ. श्ले. पू. फा. चि..
नक्षत्र
उ. भा. उ. फा.
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पंचम अध्याय
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