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में राहु का मुख वायव्यकोण में; कर्क, सिंह और कन्या के सूर्य में राहु का मुख नैर्ऋत्यकोण में एवं तुला, वृश्चिक और धनु के सूर्य में राहु का मुख आग्नेयकोण में रहता है । नींव या जलाशय आदि खोदते समय मुख भाग को छोड़कर पृष्ठ भाग से खोदना शुभ होता है ।
राहु
देवालया
रम्भ
गृहारम्भ | सिं. क. तु.
जलाशया
रम्भ
राहु
ईशान
( पूर्व - उत्तर )
मि. मे. वृ.
४७६
म. कुंमी.
गृहारम्भ में वृषवास्तु चक्र
आग्नेय ( पूर्व और दक्षिण का
मध्य)
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राहुचक्रे
वायव्य
(उत्तरपश्चिम )
मि. क. सिं.
वृ. घ. म.
नैर्ऋत्य (दक्षिणपश्चिम)
ईशान
( पूर्व और
उत्तर का
मध्य )
क. तु. वृ.
वायव्य
( उत्तर और पश्चिम का मध्य )
१. देवालये गेहविधौ जलाशये राहोर्मुखं शम्भुदिशो विलोमतः । मीना सिंहार्क मृगार्क तस्त्रिभे खाते मुखात्पृष्ठविदिकू शुभा भवेत् ॥
आग्नेय
(पूर्व-दक्षिण)
कुं. मी. मे. वृ.मि. क. सूर्य स्थिति
मे. वृ.मि. क. सिं. कन्या | तु. वृ. ध. सूर्य स्थिति
नैर्ऋत्य
(दक्षिण और पश्चिम का मध्य )
शुभ
घ. म. कुं. सूर्य स्थिति
गृह निर्माण करते समय शुभाशुभत्व
लिए बैल के आकार का
के
सिर में स्थापित करे ।
आग लगती है । उनसे
अवगत करने के चक्र बनाना चाहिए । सूर्य के नक्षत्र से तीन नक्षत्र उस चक्र यदि उन तीन नक्षत्रों में घर का आरम्भ किया जाये तो घर में आगे के चार नक्षत्र उस चक्र के अगले पैरों पर स्थापित करे । इन नक्षत्रों में घर का आरम्भ होने पर घर में शून्यता रहती है । उनसे आगे के चार नक्षत्र पिछले पैरों पर स्थापित करे । इन नक्षत्रों में गृहारम्भ होने से घर बहुत दिनों तक स्थिर रहता है उनसे आगे के तीन नक्षत्र पीठ पर स्थापित करे । इन नक्षत्रों में गृहारम्भ करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इससे आगे के चार नक्षत्र दक्षिण कुक्षि में स्थापित करे । इन नक्षत्रों में गृहारम्भ करने से लाभ होता है । अनन्तर तीन नक्षत्र पुच्छ में स्थापित करे ।
-मुहूर्तचिन्तामणि, बनारस, सन् १९३९ ई., वास्तुप्रकरण, श्लोक १९
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