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होता है। एक शेष में अग्नि का आवास आकाश में होता है, इसका फल प्राणों को नाश करनेवाला बताया गया है और दो शेष में अग्नि का वास पाताल में होता है, इसका फल अर्थनाशक कहा गया है । प्रश्नविचार
जिस समय किसी भी कार्य के लाभालाभ, शुभाशुभ जानने की इच्छा हो उस समय का इष्टकाल बनाकर प्रश्नकुण्डली, ग्रहस्पष्ट, भावस्पष्ट, नवमांश कुण्डली और चलित कुण्डली बनाकर विचार करना चाहिए। प्रश्नलग्न में चरराशि, बलवान् लग्नेश, कार्येश शुभग्रहों से युत या दृष्ट हों तथा वे १।४।५।७।९।१० स्थानों में हों तो प्रश्नकर्ता जिस कार्य के सम्बन्ध में पूछ रहा है, वह जल्दी पूरा होगा। यदि स्थिर लग्न हो, लग्नेश और कार्येश बलवान् हों तो विलम्ब से कार्य होता है। द्विस्वभाव राशि लग्न में हो तथा ११४।५।७।९।१०वें भाव में बलवान् पापग्रह हों; लग्नेश, कार्येश हीनबल, नीच, अस्तंगत या शत्रुक्षेत्री हों तो कार्य सफल नहीं होता। धन प्राप्ति के प्रश्न में लग्न-लग्नेश, धनधनेश और चन्द्रमा से; यश प्राप्ति के लिए लग्न, तृतीय, दशम और इनके स्वामी तथा चन्द्रमा से; सुख, शान्ति, गृह, भूमि आदि की प्राप्ति के लिए लग्न, चतुर्थ, दशम स्थान, इनके स्वामी और चन्द्रमा से; परीक्षा में यश प्राप्ति के लिए लग्न, पंचम, नवम, दशम स्थान, इनके स्वामी और चन्द्रमा से; विवाह के लिए लग्न, द्वितीय, सप्तम स्थान, इन स्थानों के स्वामी और चन्द्रमा से; नौकरी, व्यवसाय और मुक़दमा में विजय प्राप्त करने के लिए लग्न-लग्नेश, दशम-दशमेश, एकादश-एकादशेश और चन्द्रमा से; बड़े व्यापार के लिए लग्न-लग्नेश, द्वितीय-द्वितीयेश, सप्तम-सप्तमेश, दशम-दशमेश, एकादश-एकादशेश और चन्द्रमा से; लाभ के लिए लग्न-लग्नेश, एकादश-एकादशेश और चन्द्रमा से एवं सन्तान प्राप्ति के लिए लग्न-लग्नेश, द्वितीय-द्वितीयेश, पंचम-पंचमेश और गुरु से विचार करना चाहिए। रोगी के स्वस्थ, अस्वस्थ होने का विचार
प्रश्नलग्न में पापग्रह की राशि हो, लग्न पापग्रह से युत या दृष्ट हो या अष्टम स्थान में चन्द्रमा अथवा पापग्रह हों तो रोगी का मरण होता है ।
प्रश्नलग्नकुण्डली में पापग्रह आठवें या बारहवें स्थान में हो या चन्द्रमा १।६।७८वें स्थान में हो तो शीघ्र ही रोगी की मृत्यु होती है। चन्द्रमा लग्न में, सूर्य सप्तम में, मंगल मेष राशिस्थ वृश्चिक के नवमांश में; चन्द्रमा से युक्त हो तो रोगी का शीघ्र मरण होता है। प्रश्नलग्न से सातवें स्थान में पापग्रह हों तो रोगी को महाकष्ट और शुभग्रह हों तो रोगी स्वस्थ होता है । सप्तम स्थान में शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के ग्रह हों तो मिश्रित फल होता है । - लग्नेश निर्बल हो, अष्टमेश बली हो और चन्द्रमा छठे या आठवें भाव में हो अथवा अष्टम में शनि मंगल से दृष्ट हो तो रोगी की मृत्यु होती है । आठवें में सूर्य हो
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