________________
उदाहरण-इन्दुमती का कृत्तिका नक्षत्र होने से सर्प योनि हुई और चन्द्रवंश का रेवती नक्षत्र होने से गज योनि हुई। मिलाने से दो गुण प्राप्त हुए। इसी प्रकार अन्य जगह भी मिला लेना चाहिए । प्रह-मैत्री
.. सूर्य के मंगल, बृहस्पति और चन्द्रमा मित्र; बुध सम, शुक्र और शनैश्चर शत्रु हैं । चन्द्रमा के बुध और सूर्य मित्र; मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि सम और शत्रु कोई नहीं है । मंगल के चन्द्रमा, बृहस्पति और सूर्य मित्र; बुध शत्रु; शुक्र और शनैश्चर सम हैं । बुध के शुक्र और सूर्य मित्र, चन्द्रमा शत्रु; बृहस्पति, शनैश्चर और मंगल सम हैं । बृहस्पति के सूर्य, मंगल और चन्द्रमा मित्र; बुध और शुक्र शत्रु तथा शनैश्चर सम हैं। शुक्र के बुध और शनैश्चर मित्र; चन्द्रमा और सूर्य शत्रु तथा मंगल और बृहस्पति सम हैं । शनैश्चर के शुक्र और बुध मित्र; सूर्य, चन्द्रमा और मंगल शत्रु तथा बृहस्पति सम हैं।
ग्रह-मैत्री गुण बोधक चक्र वर का राशि-स्वामी
रा.स्वा .
श.
। ग्रह
.
कन्या का राशि-स्वामी
ر و د کا
3
।
saram
गुण विवरण
-
3
33
-
و ہ
m
उदाहरण-इन्दुमती की वृष राशि होने से, राशि-स्वामी शुक्र हुआ और चन्द्रवंश की मीन राशि होने से राशि-स्वामी बृहस्पति हुआ। अतः उपर्युक्त कोष्ठक में वर और कन्या के राशि-स्वामियों को मिलाने से ३ गुण आया । इसी प्रकार सब जगह ग्रहमैत्री गुण को लाना चाहिए । गण जानने की विधि
मघा, आश्लेषा, धनिष्ठा, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, कृत्तिका, चित्रा और विशाखा ये नक्षत्र राक्षसगण; तीनों पूर्वा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, भरणी और आर्द्रा ये नक्षत्र मनुष्यगण; और अनुराधा, पुनर्वसु, मृगशिरा, श्रवण, रेवती, स्वाती, हस्त, अश्विनी और पुष्य ये नक्षत्र देवतागण संज्ञक हैं ।
पंचम अध्याय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org