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पंचवर्ग
ल.
हद्दा - साधन
द्वादश भाव स्पष्ट चक्र
सं. ध. सं. स. सं. सु. सं. पु. सं. रि. सं. भा.
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७ ७ ८ ८९ ९१० | १०|११|११ २३ ९ २४ १० २६ ११२७११ २६ १० २४ ५१ २५५९ ३३ ७४१ १५४१ ७ ३३ ५९२५ ३८ ४१ ४४४७५०५३ / ५६ ५३ ५० ४७ ४४४१ स्त्री. सं. आ. सं. ध. सं. क. सं. ला. सं. व्य. सं. १ १ २ | २ | ३ | ३ | ४ ४ ५/ ५ / ६ ९२४१० २६ ११,२७११ २६ १० २४९ ५१ २५५९३३ ७४११५४१ ७ ३३५९ २५ ३८ ४१ ४४४७५० ५३५६ ५३५० ४७४४ ४१
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ताजिक मित्रादि-संज्ञा
प्रत्येक ग्रह अपने भाव से ३, ५, ९ और ११ वें भाव को मित्र दृष्टि से, २, ६, ८ और १२वें भाव को समदृष्टि से एवं १, ४, ७ और १० वें भाव को शत्रु दृष्टि से देखता है | अभिप्राय यह है कि जो ग्रह जहाँ पर हो उसके ३, ५, ९, और ११ वें स्थान में रहनेवाले ग्रह मित्र; २, ६, ८ और १२वें स्थान में रहनेवाले ग्रह सम एवं १, ४, ७ और १० वें भाव में रहनेवाले ग्रह शत्रु होते हैं । यह विचार वर्षकुण्डली से किया जाता है ।
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मेष के ६ अंश तक गुरु, ७ से १२ अंश तक शुक्र, १३ से
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वर्षपत्र में पंचवर्ग का गणित लिखा जाता है । इसके पंचवर्गों में गृह, उच्च, हद्दा, द्रेष्काण और नवांश ये पाँच गिनाये गये हैं । इनमें गृह, द्रेष्काण एवं नवांश साधन की विधि पहले लिखी जा चुकी है । यहाँ पर हद्दा साधन का प्रकार लिखा जाता है ।
२१ से २५ अंश तक ८ अंश तक शुक्र ९ से तक शनि और २८ से ३० ७ से १२ अंश तक शुक्र,
चतुर्थ अध्याय
राश्यादयः
भा.
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राश्यादयः
२० अंश तक बुध, भौम और २६ से ३० अंश तक शनि हद्देश होता है । वृष के १४ अंश तक बुध, १५ से २२ अंश तक गुरु, २३ से २७ अंश अंश तक मंगल हद्देश होता है । मिथुन के ६ अंश तक बुध, १३ से १७ अंश तक गुरु, १८ से २४ अंश तक मंगल और
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