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शुक्र होते हैं । संकटा दशा के पूर्वार्द्ध ( १ से ४ वर्ष तक ) में राहु और उत्तरार्द्ध (५ से ८ वर्ष तक ) में केतु स्वामी होता है ।
जन्मनक्षत्र से योगिनी दशा निकालने के लिए जन्म-नक्षत्र संख्या में तीन जोड़कर आठ से भाग देने पर एकादि शेष में क्रमशः मंगला, पिंगलादि दशा एवं शून्य शेष में संकटा दशा समझनी चाहिए ।
स्पष्ट दशा साधन करने के लिए विशोत्तरी दशा के समान भयात के पलों को दशा के वर्षों से गुणा कर भभोग के पलों का भाग देने पर दशा के भुक्त वर्षादि आयेंगे । भुक्त वर्षादि को दशा वर्ष में से घटाने पर भोग्य वर्षादि होंगे।
उदाहरण-भयात १६:३९ = ९९९ पल, भभोग ५८४४४ % ३५२४ पल ।
इस उदाहरण में जन्मनक्षत्र कृत्तिका है । अश्विनी से कृत्तिका तक गणना करने पर तीन संख्या हुई, अतः ३ + ३ = ६ ।
६:८-६ शेष । यहाँ मंगला को आदि कर ६ तक गिना तो उल्का की दशा आयी। बिना नक्षत्र-गणना किये जन्मनक्षत्र से योगिनी दशा जानने के लिए नीचे चक्र दिया जाता है
जन्म-नक्षत्र से योगिनी दशा बोधक चक्र मं. पि. धा.। भ्रा. .। भ. । उ. सि. सं.__ दशा |
रा.के. स्वामी
वर्ष
आश्ले. | म.
| म.
पू.फा./3.
स्वा
.
वि. | मन
जन्मनक्षत्र
पू. भा. अश्वि . उ.भा. रे.
| भ. | कृ. । रो.
भयात के पलों को उल्का के वर्षों से गुणा किया९९९४६ = ५९९४:३५२४ पलात्मक भभोग ३५२४) ५९९४ (१ वर्ष
३५२४
२४७०x१२ ३५२४) २९६४० (८ मास
२८१९२ १४४८४ ३०
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भारतीय ज्योतिष
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