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उदाहरण-द्वितीय अध्याय में दी गयी उदाहरण-कुण्डली ही यहां पर उदाहरण समझना चाहिए। यहाँ लग्नेश सूर्य है और अष्टमेश शुक्र है। सूर्य चर राशि में और अष्टमेश द्विस्वभाव राशि में है, अतः अल्पायु योग हुआ है। द्वितीय प्रकार अर्थात् चन्द्रशनि से विचार किया तो चन्द्रमा स्थिर राशि में और शनि द्विस्वभाव राशि में है अतः दीर्घायु योग हुआ।
इष्टकाल २३।२२४२४६१४४५ = ९।१०।४८ + रविस्पष्ट ०।१०। ७।३४ सूर्य स्पष्ट ९।१०।४८। ० ९।२०५५।३४ स्पष्ट होरालग्न
इस उदाहरण में जन्मलग्न स्थिर और होरालग्न स्थिर राशि में है अतः अल्पायु योग हुआ।
इस उदाहरण में दो प्रकार से अल्पायु योग आया है, अतएव अल्पायु समझनी चाहिए। स्पष्टायु निकालने के लिए गणित क्रिया कीलग्नेश सूर्य
०।१०। ७।३४ अष्टमेश शुक्र
११॥२३॥२०॥१० 6 राशियों को होरालग्न
९॥२०॥५५॥३४ जोड़ दिया जन्मलग्न
४।२३।२५।२७
-७७।४८।४५ ७७१४८।४५ ४ = १९।२७।११ इसे ३२ से गुणा किया और ३० का भाग दिया तो वर्षादि २३।४।३।४३ मिला। इसे अल्पायु के द्वितीय खण्ड में से घटाया
३६।०1०1 ० २३।४।३।४३
१२।७।२६।१७ स्पष्टायु आयुसाधन की दूसरी प्रक्रिया
जन्मकुण्डली के केन्द्रांक, त्रिकोणांक, केन्द्रस्थ ग्रहांक और त्रिकोणस्थ ग्रहांक इन चारों संख्याओं को जोड़कर योगफल को १२ से गुणा कर १० का भाग देने से जो वर्णादि लब्ध आयें उनमें से १२ घटाने पर आयु प्रमाण निकलता है । १. केन्द्र में सिर्फ चन्द्रमा है, सूर्य से चन्द्रमा दूसरी संख्या का है। अतः २ अंक लिया है,
इसी प्रकार मंगल से ३, बुध से ४, गुरु से ५, शुक्र से ६, शनि से ७, राहु से ८ और केतु से ९ अंक लेते हैं।
तृतीयाध्याय
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