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आये तो उसे ठीक समझना चाहिए। यदि तीनों प्रकार से भिन्न-भिन्न प्रकार की आयु आये तो जन्मलग्न और होरालग्न पर से जो आयु निकले उसी को ग्रहण करना चाहिए । लग्न या सप्तम में चन्द्रमा हो तो शनि और चन्द्रमा पर से अन्यथा जन्मलग्न और होरालग्न पर से आयु सिद्ध करना
विसंवाद होने पर आयु निकालना चाहिए । चाहिए ।
इस प्रकार आयु का योग निश्चित कर लेने पर भी यदि लग्नेश या अष्टमेश शनि हो तो कक्षा हानि अर्थात् दीर्घायु योग आया हो तो उसको मध्यमायु योग, मध्यमायु योग आया हो तो अल्पायु योग और अल्पायु योग आया हो तो हीनायु योग होता है, परन्तु शनि ७।१०।११ राशियों में से किसी भी राशि में हो तो कक्षा हानि नहीं होती है ।
लग्न या सप्तम में गुरु हो अथवा केवल शुभग्रह से युत या दृष्ट गुरु हो तो कक्षा-वृद्धि अर्थात् अल्पायु में मध्यमायु, मध्यमायु में दीर्घायु और दीर्घायु में पूर्णायु होती है ।
तीनों प्रकार से दीर्घायु आये तो १२० वर्ष, दो प्रकार से आये तो १०८ वर्ष तथा एक प्रकार से आये तो ९६ वर्ष होते हैं ।
तीनों प्रकार से मध्यमायु में ८० वर्ष, दो प्रकार से मध्यमायु में ७२ वर्ष और एक प्रकार से मध्यमायु में ६४ वर्ष होते हैं ।
तीनों प्रकार से अल्पायु में ३२ वर्ष, दो प्रकार से अल्पायु योग में ३६ वर्ष और एक प्रकार से अल्पायु हो तो ४० वर्ष होते हैं ।
स्पष्टायु साधन का नियम
जिन ग्रहों पर से आयु जानना हो उन स्पष्ट ग्रहों की राशियों को छोड़ अंशादि का योग करके, योगकारक ग्रहों की संख्या से भाग देकर जो अंशादि आयें, उनके अनुसार अंश, कला, विकला फल के कोष्ठक के नीचे जो वर्ष, मास और दिनादि हों उन्हें जोड़कर दीर्घायु हो तो ९६ में से, मध्यमायु हो तो ६४ में से और अल्पायु हो तो ३२ में से घटाने पर स्पष्टायु होती है ।
मतान्तर से योगकारक ग्रहों के अंशादि जोड़ने से जो आये उसमें योगकारक ग्रहों की संख्या का भाग देने से जो लब्ध आये उसमें तीन प्रकार से आयु आने पर ४० से, दो प्रकार से आने पर ३६ से और तीन प्रकार से आने पर ३२ से गुणा कर ३० का भाग देने पर लब्ध वर्षादि को पूर्वोक्त आयु खण्ड में से घटाने पर स्पष्टायु होती है ।
१. इष्टकाल को २ से गुणा कर पाँच का भाग देने से जो राश्यादि आयें उनमें रविस्पष्ट को जोड़
देने पर होरालग्न होता है ।
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भारतीय ज्योतिष
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