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सदा जातक को रोगी बनाते हैं। अष्टमेश चतुर्थ स्थान में शत्रुक्षेत्री हो तो मारक बन जाता है। । पाराशर के मत से द्वितीय और सप्तम मारक स्थान हैं। तथा इन दोनों के स्वामी-द्वितीयेश, सप्तमेश, द्वितीय और सप्तम में रहनेवाले पापग्रह एवं द्वितीयेश और सप्तमेश के साथ रहनेवाले पापग्रह मारकेश होते हैं । अभिप्राय यह है कि यदि द्वितीयेश पापग्रह हो तथा पापग्रह से दृष्ट हो तो प्रथम वही मारकेश होता है, पश्चात् सप्तमेश पापग्रह हो और पापग्रह से दृष्ट हो; अनन्तर द्वितीयेश में रहनेवाला पापग्रह, एवं सप्तम में रहनेवाला पापग्रह, द्वितीयेश के साथ रहनेवाला पापग्रह और सप्तमेश के साथ रहनेवाला पापग्रह मारकेश होता है । शनि यदि मारकेश के साथ हो तो मारकेश को हटाकर स्वयं मारक बन जाता है । द्वादशेश भी पापग्रह होने पर मारक बन जाता है। पापग्रह षष्ठेश हो या पापराशि में षष्ठेश बैठा हो अथवा पापग्रह से दृष्ट हो तो षष्ठेश की दशा में भी मरण की सम्भावना होती है। मारकेश की दशा में षष्ठेश, अष्टमेश और द्वादशेश की अन्तर्दशा में मरण सम्भव होता है। यदि मारकेश अधिक बलवान् हो तो उसकी दशा या अन्तर्दशा में मरण होता है। राहु या केतु १७।८।१२वें भाव में हों अथवा मारकेश से ७वें भाव में हों या मारकेश के साथ हों तो मारक होते हैं। मकर और वृश्चिक लग्नवालों के लिए राहु मारक बताया गया है । जैमिनी के मत से आयुर्विचार
लग्नेश-अष्टमेश, जन्मलग्न-चन्द्र एवं जन्मलग्न-होरालग्न इन तीनों के द्वारा आयु का विचार करना चाहिए। उपर्युक्त तीनों योगोंवाले ग्रह अर्थात् लग्नेश और अष्टमेश, जन्मलग्न और चन्द्र, तथा जन्मलग्न और होरालग्न द्वारा नीचे के चक्र से आयु का निर्णय करना चाहिए।
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दीर्घायु
मध्यमायु
चरराशि-लग्नेश चरराशि-अष्टमेश स्थिरराशि-लग्नेश द्विस्वभाव-अष्टमेश द्विस्वभाव-लग्नेश | स्थिरराशि-अष्टमेश
। परराशि-लग्नेश स्थिरराशि-अष्टमेश स्थिरराशि-लग्नेश
चरराशि-अष्टमेश | द्विस्वभाव-लग्नेश द्विस्वभाव-अष्टमेश
. अल्पायु | चरराशि-लग्नेश | द्विस्वभाव-अष्टमेश स्थिरराशि-लग्नेश स्थिरराशि-अष्टमेश | द्विस्वभाव-लग्नेश चरराशि-अष्टमेश
इसी प्रकार लग्न-चन्द्र अथवा शनि-चन्द्र, जन्मलग्न तथा होरालग्न पर से आयु का विचार होता है । यदि तीनों प्रकार से अथवा दो प्रकार से एक ही प्रकार की आयु तृतीयाम्याच
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