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स्त्री की कुण्डली में २१४।६।८।१०।१२ राशियों में मंगल, बुध, गुरु और शुक्र हों तो वह नारी विदुषी, साध्वी, विख्यात और गुणवती होती है।
सप्तम भाव में शनि पापग्रहों से दृष्ट हो तो स्त्री आजन्म अविवाहित रहती है । सप्तमेश पापयुत या दृष्ट हो तथा सप्तम में पापग्रह हों तो यह योग विशेष बलवान् होता है । यदि सप्तमेश शनि के साथ हो तो बड़ी आयु में विवाह करनेवाली होती है । वैधव्य योग
१-सप्तम भाव में मंगल हो तथा सप्तम भाव पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो बालविधवा योग होता है ।
२-लग्न या चन्द्रमा से सप्तम या अष्टम भाव में तीन-चार पापग्रह हों तो स्त्री विधवा होती है।
, ३-मंगल की राशि में स्थिर राहु पापग्रह से युत होकर ८ या १२वें भाव में हो तो विधवा होती है।
४-लग्न और सप्तम भाव में पापग्रह हो तो विवाह के सात-आठ वर्ष बाद विधवा होती है। चन्द्रमा से ७वें, ८वें और १२वें भाव में शनि, मंगल दोनों हों तथा वे पापग्रहों से दृष्ट हों तो स्त्री विवाह के बाद जल्दी ही विधवा होती है ।
५-क्षीण चन्द्रमा, नीच या अस्तंगत राशि, चन्द्रमा छठे या आठवें भाव में हो तो जल्दी विधवा होने का योग होता है ।
६-षष्ठेश और अष्टमेश ६।१२वें भाव में पापग्रह युत या दृष्ट हों तो वैधव्य योग होता है।
७-अष्टमेश सप्तम भाव में और सप्तमेश अष्टम भाव में हो तथा दोनों या एक स्थान पापग्रहों से दृष्ट हो तो वैधव्य योग होता है।
८-चन्द्रमा से सातवें भाव में मंगल, शनि, राहु और सूर्य इन चारों में से कोई दो ग्रह हों तो स्त्रो विधवा होती है। सप्तम स्थान में प्रत्येक ग्रह का फल
सूर्य-सप्तम स्थान में सूर्य हो तो नारी दुष्ट स्वभाव, पति-प्रेम से वंचित और कर्कशा होती है।
चन्द्रमा-सप्तम में चन्द्रमा हो तो कोमल स्वभाव की, लज्जाशील तथा उच्च का चन्द्रमा हो तो वस्त्र, आभूषणवाली, धनिक और सुन्दरी होती है।
___ मंगल-सप्तम में मंगल हो तो नारी सौभाग्यहीन, कुकर्मरत तथा कर्क या सिंह राशि में शनैश्चर के साथ मंगल हो तो व्यभिचारिणी, वेश्या, धनी और बुरे स्वभाव की होती है।
बुध- सप्तम में बुध हो तो नारी आभूषणवाली, विदुषी, सौभाग्यशालिनी और पति की प्यारी होती है। उच्च राशि का बुध हो तो लेखिका, सुन्दर पतिवाली, १९०
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