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पापग्रह से युत या दृष्ट हो तो धनहानि, नौकरी में गड़बड़ी, प्रमेह, नेत्ररोग होते हैं। राहु द्वितीयेश या सप्तमेश हो तो शीतज्वर, कलह, शूलरोग होते हैं।
केतु में गुरु-१।४।५।७।९।१०।११वें भाव में गुरु हो तो इस दशा में विद्यालाभ, कीतिलाभ, सम्मान, रक्तविकार, परदेशगमन, पुत्रप्राप्ति, स्थानभ्रंश, शान्तिलाभ होता है । गुरु, नीच, अस्तंगत होकर दायेश से ६।८११वें भाव में हो तो धन-धान्य का नाश, आचार की शिथिलता, स्त्रीवियोग और अनेक प्रकार के कष्ट होते हैं ।
केतु में शनि-८।१२वें भाव में शनि हो तो इस दशा में कष्ट, चित्त में सन्ताप, धननाश और भय होता है। उच्च या मूलत्रिकोणी शनि ३।६।११वें भाव में स्थित हो तो जातक को साधारणतः सुख, मनोरथसिद्धि, सम्मान-प्राप्ति होती है। शनि दायेश से ६।८।१२वें भाव में हो तो इस दशा में मृत्यु, भयंकर रोग, धनहानि होती है।
केतु में बुध-११४।५।७।९।१०वें भाव में बलवान् बुध हो तो इस दशा में ऐश्वर्यप्राप्ति, चतुराई, यशलाभ और सत्संगति को प्राप्ति होती है । दायेश से ६।८।१२वें भाव में नीच या अस्तंगत हो तो खर्च अधिक, बन्धन, द्वेष, झगड़ा होता है तथा अपना घर छोड़कर अन्यत्र निवास करना पड़ता है । शुक्र की महादशा में सभी ग्रहों को अन्तर्दशा का फल
शुक्र में शुक्र-१।४।५।७।९।१०वें भाव में बली शुक्र बैठा हो तो इस दशा में धनप्राप्ति, श्रेष्ठ कार्यों में रत, पुत्र की प्राप्ति, कल्याण, सम्मान, अकस्मात् धनप्राप्ति, नये घर का निर्माण आदि फल होते हैं। दायेश से ६।८।१२वें भाव में नीच या अस्तंगत राहु हो तो कष्ट, मृत्यु, रोग, राजा से भय और आर्थिक कष्ट आदि फल होते हैं । शुक्र स्वराशि या उच्च का होकर ११४५वें भाव में हो तो जातक अनेक नवीन ग्रन्थों का निर्माण इसकी दशा में करता है।
शुक्र में सूर्य-इस दशा में कलह, सन्ताप, दारिद्रय आदि होते हैं। यदि सूर्य उच्च या स्वराशि का हो अथवा दायेश से १।४।५।७।९।१०वें भाव में हो तो धनलाभ, सम्मान, शासन की प्राप्ति, माता-पिता से सुख, भाई से लाभ होता है । दायेश से ६१८॥ १२वें भाव में हो तो पीड़ा, चिन्ता, कष्ट, रोग आदि होते हैं।
शुक्र में चन्द्रमा-चन्द्रमा उच्च का, स्वराशि का या मित्रवर्ग का हो तो जातक को उस दशा में स्त्री का सुख, धनलाभ, पुत्री की प्राप्ति, उन्नति, उच्च पद का लाभ आदि प्राप्त फल होते हैं । यदि चन्द्रमा दायेश से ६।८।१२वें भाव में हो तो नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं।
शुक्र में भोम-१।४।५।७।९।१०।११वें भाव में बलवान् भीम स्थित हो तो इस दशा में मनोरथसिद्धि, धनलाभ, स्थानभ्रंश, कलह आदि फल प्राप्त होते हैं। यदि दायेश से ६।८।१२वें भाव में भौम हो तो जातक को रोग, कष्ट, धननाश, खेत की हानि और मकान की हानि भी इस दशा में सहनी पड़ती है। ३९६
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