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दोनों ग्रह १।४।७।१० में स्थित हों या छठे में गुरु और ग्यारहवें में चन्द्रमा तथा लाभेश शुभग्रह की राशि और शुभग्रह के नवांश में स्थित हो तो जातक प्रतापी होता है।
५-बली शुभग्रह ग्यारहवें भाव में हो और किसी अन्य शुभग्रह के द्वारा देखा भी जाता हो अथवा द्वितीय स्थान में चन्द्र, गुरु और शुक्र गये हों तो जातक श्रीमान् होता है।
६-पंचम स्थान में गुरु और दशम स्थान में चन्द्रमा हो तो जातक राजा, बुद्धिमान् या तपस्वी होता है। पितृसुख योग
१-( क ) दशमेश शुभग्रह हो और वह शुभग्रह से युत या दृष्ट हो; (ख) दशमेश गुरु, शुक्र से युत हो; (ग) नवमेश परमोच्च का हो; (घ) चन्द्रकुण्डली में केन्द्रस्थान में शुक्र हो; एवं (ङ) दशमेश शुभग्रहों के मध्य में हो तो जातक को पिता का सुख अधिक होता है।
२-( क ) सूर्य, मंगल दसवें या नौवें भाव में हों; ( ख ) पापग्रह से युत सूर्य सातवें भाव में हो; (ग) सातवें में सूर्य, दसवें स्थान में मंगल और बारहवें स्थान में राहु हों; (घ) चतुर्थेश ६।८।१२वें भाव में हो; (ङ) दशमेश रवि, मंगल से युक्त हो एवं ( च ) दशम भाव में दशमेश की शत्रुराशि का ग्रह हो तो जातक के पिता की शीघ्र मृत्यु होती है । जातक अपने पिता का बहुत कम सुख प्राप्त करता है ।।
३-( क ) कर्क राशि में राहु, मंगल और शनि हों; (ख ) चतुर्थ स्थान में क्रूर ग्रह हों; (ग) चतुर्थेश क्रूर ग्रहों से दृष्ट या युत हो; (घ) दशम स्थान में समराशिगत हो और उस राशि का स्वामी क्रूर ग्रह हो; (ङ) चन्द्रमा पापग्रह के साथ हो तथा चन्द्रमा से चतुर्थ शनि और राहु हो तो जातक को माता का सुख कम मिलता है; अर्थात् छोटी ही अवस्था में माता की मृत्यु हो जाती है । दशम भाव का विशेष विचार
दशम भाव से शासन, मान, आभूषण, वस्त्र, व्यापार, निद्रा, कृषि, प्रव्रज्या, कर्म, जीवन, यश विज्ञान और विद्या का विचार करना चाहिए । दशमेश, सूर्य, बुध, गुरु और शनि से भी उक्त विषयों का विचार करें।
___ दशमेश निर्बल हो तो जातक चंचल बुद्धि और दुराचारी होता है। बृहस्पति, बुध, शनि और सूर्य बलरहित ६।८।१२ स्थान में स्थित हों तो जातक सत्कर्महीन होता है। दशम भाव में मीन राशि हो और बुध तथा मंगल इसी स्थान में स्थित हों तो जातक तपस्वी होता है।
___दशमेश, बुध और बृहस्पति दशम भाव में हों तो जातक पुण्य कार्य करनेवाला होता है। लग्नेश, दशमेश एक स्थान में हों, अथवा दोनों का एकाधिपत्य हो ( कन्या
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