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दसवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो भाग्यशाली, धनी, प्रवासी, राजसेवी और भूमि-पति; ग्यारहवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो नाना प्रकार से लाभ करनेवाला, नेता, प्रमुख, परस्त्रीरत और कवि एवं बारहवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो वीर्यरोगी, विवाहादि कार्यों में व्यय करनेवाला, शत्रुओं से पीड़ित, चिन्तित और स्त्रीद्वेषी जातक होता है।
शनि-लग्नस्थान को शनि पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक श्याम वर्णवाला, नीच स्त्रीरत, स्वस्त्री से विमुख और लम्पट; दूसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो ३६ वर्ष की अवस्था तक धननाशक, कुटुम्ब-विरोधी, १९ वर्ष की अवस्था में शारीरिक कष्ट प्राप्त करनेवाला और नाना रोगों का शिकार; तीसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखे तो पराक्रमी, अधार्मिक, भाइयों के सुख से रहित, नीच संगतिप्रिय और बुरे कार्य करनेवाला; चौथे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखे तो प्रथम वर्ष में शारीरिक कष्ट पानेवाला, राजमान्य, ३५ या ३६ वर्ष की अवस्था में राज्याधिकार में वृद्धि प्राप्त करनेवाला और लब्धप्रतिष्ठ; पांचवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो सन्तान-हानि, नीचविद्याविशारद, नीचजनप्रिय और नीचकार्यरत; छठे भाव को पूर्ण पृष्टि से देखता हो तो शत्रुनाशक, मातुलकष्टकारक, नेत्ररोगी, प्रमेह रोगी, धर्म से विमुख और कुमार्गरत; सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो कलहप्रिय, ३६ वर्ष की अवस्था में मृत्युतुल्य कष्ट पानेवाला, धननाशक और मलीन स्वभाववाला; आठवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो कुटुम्ब-विरोधी, राज्यहानिवाला, पिता के धन का ३६ वर्ष की आयु तक नाश करनेवाला और रोगी; नौवें भाव को देखता हो तो देशाटन करनेवाला, भाइयों से विरोध करनेवाला, प्रवासी, धन प्राप्त करनेवाला, नीचकर्मरत, पराक्रमी, धर्महीन और निन्दक; दसवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो पिता के सुख से रहित, माता के लिए कष्टकारक, भूमिपति, राज्यमान्य और सुखी; ग्यारहवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो वृद्धावस्था में पुत्र का सुख पानेवाला, नाना भाषाओं का ज्ञाता और साधारण व्यापार में लाभ प्राप्त करनेवाला एवं बारहवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो अशुभ कार्यों में धन खर्च करनेवाला, मातुल को कष्टदायक, शत्रुनाशक और सामान्य लाभ करनेवाला होता है ।
राहु-लग्नभाव को राहु पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो शारीरिक रोगी, वातविकारी, उग्र स्वभाववाला, खिन्न चित्तवाला, उद्योगरहित और अधार्मिक; दूसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो कुटुम्ब-सुखहीन, धननाशक, पत्थर की चोट से दुखी होनेवाला और चंचल प्रकृति; तीसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो पराक्रमी, पुरुषार्थी और पुत्रसन्तान-रहित; चौथे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो उदररोगी, मलीन और साधारण सुखी; पांचवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो भाग्यशाली, धनी, व्यवहारकुशल और सन्तानसुखी; छठे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो शत्रुतृतीयाध्याय
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