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(११) एकादशेश की स्थिति तथा उसके सम्बन्ध आदि पर से एवं ( १२ ) एकादश और मंगल के सम्बन्ध तथा दृष्टि पर से विचार करना चाहिए।
___ यदि लग्नेश और तृतीयेश परस्पर मित्र हों तो भाई-बहनों का परस्पर प्रेम रहता है तथा लग्नेश और तृतीयेश शुभभावगत हों तो भाइयों में परस्पर प्रेम रहता है। अन्य विशेष योग
१-लग्न और लग्नेश से ३।११ स्थानों में बुध, चन्द्र, मंगल और गुरु स्थित हों तो अधिक भाई तथा केतु स्थित हो तो बहनें अधिक होती हैं ।
२-तृतीयेश शुभग्रह से युक्त ११४७।१० स्थानों में हो तो भाइयों का सुख होता है।
३-तृतीयेश जितनी संख्यक राशि के नवांश में गया हो उतनी भाई-बहनों की संख्या होती है।
__ ४-नवम भाव में जितने स्त्रीग्रह हों उतनी बहनें और जितने पुरुषग्रह हों उतने भाई होते हैं ।
५-तृतीय भाव में गये हुए ग्रह के नवांश की संख्या जितनी हो उतने भाईबहन जानने चाहिए।
६-तृतीयेश और मंगल ६।८।१२ स्थानों में हों तो भ्रातृहीन समझना चाहिए।
७-तृतीय भाव में पापग्रह हो अथवा पापग्रह से दृष्ट हो तो भ्रातृ हानि करनेवाला योग होता है।
८-भ्रातृकारक ग्रह पापग्रहों के बीच में हो या तीसरे भाव पर पापग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो तो भाई का अभाव-सूचक योग होता है । विशिष्ट विचार
तृतीय भाव से छोटे-बड़े भाई का विचार एवं पराक्रम, साहस, कण्ठस्वर, आभरण, वस्त्र, धैर्य, वीर्य, बल, मूलफल और भोजन का विशेष विचार करना चाहिए । जन्म कुण्डली में तृतीय, सप्तम, नवम और एकादश से भाई का विचार किया जाता है । तृतीय भाव के स्थान का स्वामी, उसकी राशि तथा उस राशि में स्थित ग्रहों के बलाबल से भाई का विचार करना चाहिए । तृतीयेश और मंगल अष्टम भाव में हों तो भाई की मृत्यु होती है। दोनों पापग्रह की राशि में हों अथवा पापग्रह के साथ हों तो भ्रातृ सुख की अल्पता रहती है । अत्यन्त क्रूर ग्रह से युक्त तृतीय भाव हो अथवा भ्रातृकारक क्रूर ग्रह हो या तृतीय भाव का स्वामी क्रूर ग्रह हो तो बाल्यावस्था में भाई का मरण हो जाता है। बलवान् द्वितीयेश अष्टम भाव में हो, पापयुक्त भ्रातृकारक ग्रह तृतीय या चतुर्थ भाव के कारक से युक्त हों तो सौतेले भाई का सुख होता है। यदि
तृतीयाध्याय
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