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७-शुक्र द्वितीय स्थान में हो और द्वितीयेश तथा मंगल इन दोनों का योग हो तो २७वें वर्ष में विवाह होता है। मतान्तर से इस योग के रहने पर २२ या २३ वर्ष की आयु में विवाह होता है।
८-पंचम भाव में शुक्र और चतुर्थ में राहु हो तो ३१वें या ३३वें वर्ष की आयु में विवाह होता है।।
९-तृतीय भाव में शुक्र और ९वें भाव में सप्तमेश गया हो तो ३०वें या २७वें वर्ष में विवाह होता है। ..
१०-लग्नेश से शुक्र जितना नज़दीक हो उतनी जल्दी विवाह होता है। शुक्र की स्थिति जिस राशि में हो उस राशि की दशा में विवाह होता है ।
११-सप्तमस्थ राशि की जो संख्या हो उसमें आठ और जोड़ देने पर विवाह की वर्ष संख्या आ जाती है। शुक्र, लग्न और चन्द्रमा से सप्तमाधिपति की संख्या में विवाह का योग आता है।
१२- लग्न, द्वितीय और सप्तम में शुभग्रह हो या इन स्थानों पर शुभग्रहों की दृष्टि हो तो छोटी अवस्था में विवाह होता है।
- १३-लग्नेश और सप्तमेश को जोड़कर जो राशि हो उस राशि में जब गोचर का गुरु पहुँचता है तब विवाह का योग होता है। अपनी जन्म-राशि के स्वामी और अष्टमेश को जोड़ने से जो राशि आये, उस राशि में जब गोचर का गुरु पहुँचता है तब विवाह होता है।
१४-शुक्र और चन्द्रमा इन दोनों में से जो ग्रह बली हो उसकी महादशा में विवाह होता है।
१५-यदि सप्तमेश शुक्र के साथ हो तो सप्तमेश की अन्तर्दशा में विवाह होता है । नवमेश, दशमेश और सप्तम भावस्थ ग्रह की अन्तर्दशा में विवाह होता है ।
१६-लग्नेश और सप्तमेश के स्पष्टराश्यादि के योग तुल्यराशि में जब गोचरीय बृहस्पति स्थित रहता है तब विवाह होता है। चन्द्राधिष्ठित नक्षत्र और सप्तमेश के योग्य तुला अंश में गुरु के होने पर विवाह होता है। यदि गुरु मित्र के नवांश में हो तो एक ही भार्या प्राप्त होती है। स्वनवांश में स्थित हो तो तीन स्त्रियों का योग होता है। यदि गुरु उच्चांश में स्थित हो तो बहुत स्त्रियों का योग होता है।
१७-सप्तमेश जिस राशि और नवांश में स्थित हो उसके स्वामियों में अथवा शुक्र और चन्द्रमा में जो अधिक बली हो उसकी दशा में सप्तमेश युक्त राश्यंश से त्रिकोण में गुरु के होने पर विवाह होता है ।
१८-शुक्रयुक्त सप्तमेश की दशा भुक्ति में विवाह का योग आता है। लग्न से द्वितीयेश की राशिपति दशा मुक्ति में पाणिग्रहण होता है। दशमेश और अष्टमेश की दशा मुक्ति में विवाह का योग आता है।
तृतीयाध्याय
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