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३-बुध-शुक्र का योग द्वितीय, तृतीय भाव में हो; बुध १४५७।९।१० स्थानों में हो; कर्क राशि का गुरु धन स्थान में हो; गुरु १।४।५।७।९।१० स्थानों में हो; धनेश, सूर्य या मंगल हो और वह गुरु या शुक्र से दृष्ट हो; गुरु स्वराशि के नवांश में हो एवं कारकांश कुण्डली में पांचवें भाव में बुध या गुरु हो तो जातक फलित ज्योतिष का जाननेवाला होता है।
४.-कारकांश लग्न से द्वितीय, तृतीय और पंचम भाव में केतु और गुरु स्थित हो; धनस्थान में चन्द्र और मंगल का योग हो तथा बुध की दृष्टि हो, धनेश अपनी उच्च राशि में हो, गुरु लग्न और शनि आठवें भाव में हो; गुरु १।४।५।७।९।१० स्थानों में, शुक्र अपनी उच्च राशि और बुध धनेश हो या धन भाव में गया हो; द्वितीय स्थान में शुभग्रह से दृष्ट मंगल हो एवं कारकांश कुण्डली में ४०५ स्थानों में बुध या गुरु हो तो जातक गणितज्ञ होता है । जिस व्यक्ति की जन्मपत्री में गणितज्ञ योग होता है वह ज्योतिषी, एकाउण्टेण्ट, इंजीनियर, ओवरसीयर, मुनीम, खजानची, रेवेन्यू अफ़सर एवं पैमाइश करनेवाला होता है ।
५--रवि से पंचम स्थान में मंगल, शुक्र, शनि और राहु इन चारों में से कोई भी दो या तीन ग्रह स्थित हों, लग्न में चन्द्रमा स्थित हो, पंचम भाव और पंचमेश पापग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो जातक अँगरेजी भाषा का जानकार होता है।
६-शनि से गुरु सातवें स्थान में हो या शनि गुरु से नवम, पंचम का सम्बन्ध हो या ये ग्रह मेष, तुला, मिथुन, कुम्भ और सिंह राशि के हों अथवा शनि-गुरु १-७, २-८, ३-९, ५-११ में हों तो जातक वकील, वैरिस्टर, प्रोफेसर एवं न्यायाधीश होता है।
७-कारकांश कुण्डली में पांचवें भाव में पापग्रह से युत चन्द्र, गुरु स्थित हों तो नवीन ग्रन्थ लिखनेवाला जातक होता है। सन्तान विचार
सन्तान का विचार जन्मकुण्डली में पंचम स्थान और जन्मस्थ चन्द्रमा के पंचम स्थान से होता है । बृहस्पति सन्तानकारक ग्रह है।
१-पंचम भाव, पंचमाधिपति और बृहस्पति शुभग्रह द्वारा दृष्ट अथवा युत रहने से सन्तानयोग होता है ।
२-लग्नेश पांचवें भाव में हो और बृहस्पति बलवान् हो तो सन्तानयोग होता है। - ३-बलवान् बृहस्पति लग्नेश द्वारा देखा जाता हो तो प्रबल सन्तानयोग होता है।
४-सन्तान स्थान पर मंगल और शुक्र की एक पाद, द्विपाद या त्रिपाद दृष्टि आवश्यक है। ५-केन्द्रत्रिकोणाधिपति शुभग्रह हों और उनमें से पंचम में कोई ग्रह अवश्य
भारतीय ज्योतिष
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