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२-सिंह राशि में गये हुए शनि, मंगल पंचम भाव में स्थित हों और पंचमेश छठे भाव में गया हो तो सन्तान नहीं होती।
३-बुध और लग्नेश में दोनों लग्न के बिना अन्य केन्द्र स्थानों में हों तो सन्तान का अभाव होता है ।
४-५।८।१२वें भाव में पापग्रह गये हों तो वंशविच्छेदक योग होता है। लग्न में चन्द्रमा, गुरु का योग हो तथा सातवें भाव में शनि या मंगल हो तो सन्तान का अभावसूचक योग होता है ।
५-पाँचवें भाव में चन्द्रमा तथा ८।१२वें भाव में सम्पूर्ण पापग्रह स्थित हों; सातवें भाव में बुध, शुक्र; चतुर्थ में पापग्रह और पंचम भाव में गुरु स्थित हो तो सन्तानप्रतिबन्धक योग होता है ।
६-लग्न में पापग्रह, चतुर्थ में चन्द्रमा, पंचम में लग्नेश स्थित हों और पंचमेश अल्प बली हो तो वंशविच्छेदक योग होता है।
७-सातवें भाव में शुक्र, दसवें भाव में चन्द्रमा और चतुर्थ भाव में तीन-चार पापग्रह स्थित हों तो सन्तान-प्रतिबन्धक योग होता है।
८-लग्न में मंगल, आठवें में शनि और पांचवें भाव में सूर्य हो तो वंशनाशक योग होता है। विलम्ब से सन्तान प्राप्ति योग
१-लग्नेश, पंचमेश और नवमेश ये तीनों ग्रह शुभग्रह से युत होकर ६।८। १२वें भाव में गये हों तो विलम्ब से सन्तान होती है ।
२-दशम भाव में सभी शुभग्रह और पंचम भाव में सभी पापग्रह हों तो सन्तान-प्रतिबन्धक योग होता है, अतः विलम्ब से सन्तान होती है।
३-पापग्रह अथवा गुरु चतुर्थ या पंचम भाव में गया हो और अष्टम भाव में चन्द्रमा हो तो तीस वर्ष की आयु में सन्तान होती है।
४-पापग्रह की राशि लग्न में पापग्रह युक्त हो, सूर्य निर्बल हो और मंगल सम राशि ( २।४।६।८।१०।१२ ) में स्थित हो तो तीस वर्ष की आयु के पश्चात् सन्तान होती है।
५-कर्क राशि में गया हुआ चन्द्रमा पापग्रह से युक्त व दृष्ट हो और सूर्य को शनि देखता हो तो ६०वें वर्ष में पुत्र की प्राप्ति होती है। ग्यारहवें भाव में राहु हो तो वृद्धावस्था में पुत्र होता है।
६- पंचम में गुरु हो और पंचमेश शुक्र से युक्त हो तो ३२ या ३३ वर्ष की अवस्था में पुत्र होता है।
७-पंचमेश और गुरु १।४।७।१० स्थानों में हों तो ३६ वर्ष की आयु में सन्तान होती है।
मारतीय ज्योतिष
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