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८-नवम भाव में गुरु हो और गुरु से नौवें भाव में शुक्र लग्नेश से युत हो तो ४० वर्ष की अवस्था में पुत्र होता है ।
९-राहु, रवि और मंगल ये तीनों पंचम भाव में हों तो सन्तान-प्रतिबन्धक योग होता है।
१०-पंचमेश नीच राशि में हो, नवमेश लग्न में और बुध, केतु पंचम भाव में गये हों तो कष्ट से पुत्र की प्राप्ति होती है।
स्त्री की कुण्डली में निम्न योगों के होने से सन्तान का अभाव होता है।
१- सूर्य लग्न में और शनि सप्तम में हो । २-सूर्य और शनि सप्तम भाव में, चन्द्रमा दसवें भाव में स्थित हो तथा बृहस्पति से दोनों ग्रह अदृष्ट हों। ३-षष्ठेश, रवि और शनि ये तीनों ग्रह षष्ठ स्थान में हों और चन्द्रमा सप्तम स्थान में हो तथा बुध से अदृष्ट हो । ४–शनि, मंगल छठे और चौथे स्थान में हों। ५-६।८।१२ भावों के स्वामी पंचम भाव में हों या पंचमेश ३।८।१२ भावों में हो, पंचमेश नीच या अस्तंगत हो तो सन्तान योग का अभाव पुरुष और स्त्री की कुण्डली में समझना चाहिए । ४।९। १०।१२ इन राशियों का बृहस्पति पंचम भाव में हो तो प्रायः सन्तान का अभाव समझना चाहिए। तृतीयेश ११२।३।५ भावों में से किसी भाव में हो तथा शुभग्रह से युत और दृष्ट न हो तो सन्तान का अभाव समझना चाहिए।
पंचमेश और द्वितीयेश निर्बल हों और पंचम स्थान पर पापग्रह की दृष्टि हो तो सन्तान का अभाव रहता है। लग्नेश, सप्तमेश, पंचमेश और गुरु निर्बल हों तो सन्तान का अभाव रहता है । पंचम स्थान में पापग्रह हों और पंचमेश नीच हो तथा शुभग्रहों से अदृष्ट हो; बृहस्पति दो पापग्रहों के बीच में हो एवं पंचमेश जिस राशि में हो उससे ६।८।१२ भावों में पापग्रहों के रहने से सन्तान का अभाव होता है ।
सन्तान-संख्या विवार
१-पंचम में जितने ग्रह हों और इस स्थान पर जितने ग्रहों की दृष्टि हो उतनी संख्या सन्तान की समझनी चाहिए । पुरुषग्रहों के योग और दृष्टि से पुत्र और स्त्रीग्रहों के योग और दृष्टि से कन्या-संख्या का अनुमान करना चाहिए ।
२-तुला तथा वृष राशि का चन्द्रमा ५।९ भावों में गया हो तो एक पुत्र होता है। पंचम में राहु या केतु हो तो एक पुत्र होता है।
३-पंचम में सूर्य शुभग्रह से दृष्ट हो तो तीन पुत्र होते हैं । पंचम में विषम राशि का चन्द्र शुक्र के वर्ग में हो या चन्द्र शुक्र से युत हो तो बहुपुत्र होते हैं ।
४-पंचमेश की किरण-संख्या के समान सन्तान-संख्या जाननी चाहिए ।
१. सूर्य उच्च राशि का हो तो १०, चन्द्र हो तो ९, भौम ५, बुध ५, गुरु ७, शुक्र ८ और शनि
की ५ किरणे होती हैं। उच्चबल का साधन कर पंचमेश की किरणें निकाल लेनी चाहिए।
तृतीयाध्याय
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