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२७ वर्ष की अवस्था में घटित होता है । यथा
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जिस मनुष्य के जन्म-समय में लग्नेश नीचास्त और शत्रुराशि के अतिरिक्त केन्द्र में स्थित हो । अन्य ग्रह से युक्त न हो तो जातक सर्वमान्य विद्वान् होता है। यह योग ३२ वर्ष की अवस्था में सम्पन्न होता है।
जिस जातक के जन्म-समय में गुरु, चन्द्र और सूर्य पंचम, तृतीय और धर्म भाव में स्थित हों वह जातक कुबेर सदृश धनी होता है । यह योग कुबेरसंयोग्य कहलाता है। यथा
चलन
३
धनु लग्न में बलवान् सूर्य हो । चन्द्रमा के साथ मंगल दशम भाव में स्थित हो और शुक्र एकादश अथवा द्वादश भाव में अवस्थित हो तो जातक इन्द्र के समान शक्तिशाली एवं पराक्रमी होता है। ज्योतिषशास्त्र में इस योग को इन्द्रतुल्य योग बतलाया गया है । यथा
१०
X६ चंभ.
२
जिस मनुष्य के जन्म-समय पापग्रह तृतीय, एकादश और षष्ठ स्थान में स्थित हो । लग्नेश शुभग्रह से दृष्ट हो तो जातक पूज्य, मन्त्री या अन्य इसी प्रकार के पद को
कृतीयाध्याय
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