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दारिद्र योगों के अभाव में एक धनी योग होने पर जातक खाता-पीता सुखी, दो धनी योगों के होने पर आश्रयदाता, लक्षाधीश एवं तीन या इससे अधिक योगों के होने पर जातक बहुत बड़ा धनी होता है । परन्तु योगों के बलाबल का विचार कर लेना नितान्त आवश्यक है ।
१ - राहु लग्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ, अष्टम, नवम, एकादश और द्वादश भावों में से किसी भाव में स्थित हो एवं मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक और मीन इन राशियों में से किसी भी राशि में स्थित हो तो जातक धनी होता है ।
२ - चन्द्र और गुरु एक साथ किसी भी स्थान में बैठे हों तो जातक धनी होता है । सूर्य, बुध एक साथ सप्तम भाव के अलावा अन्य स्थानों में हों तो जातक बड़ा व्यापारी होता है ।
३ --- कारक ग्रहों की दशा में निर्धन होता है । जब कारक ग्रह की होता है ।
दिवालिया योग
१-- अष्टमेश ४१५।९।१० स्थानों में हो और लग्नेश निर्बल हो तो जातक दिवालिया होता है । योगकारक ग्रह के ऊपर राहु एवं रवि की दृष्टि पड़ने से योग अधूरा रह जाता है ।
२ - लाभेश व्यय में हो या भाग्येश और दशमेश व्यय में हों तो दिवालिया होता है । यदि पंचम में शनि तुलाराशि का हो तो भी यह योग बनता है ।
३ – द्वितीयेश ९।१०।११ भावों में हो तो दिवालिया योग होता है, परन्तु द्वितीयेश गुरु के दशम और मंगल के एकादश भाव में रहने से यह योग खण्डित हो
जाता है ।
होता है ।
जन्म हुआ हो तो जातक जन्म से धनी अन्यथा दशा आती है, उस समय जातक अवश्य धनी
४ -- लग्नेश वक्री होकर ६।८।१२वें भाव में स्थित हो तो भी जातक दिवालिया
जमींदारी योग
१ - चतुर्थेश दशम में और दशमेश चतुर्थ में हो ।
२ – चतुर्थेश २ या ११ वें भाव में हो । चतुर्थ स्थान की राशि चर हो और उसका स्वामी भी चर राशि में हो ।
३ – पंचमेश लग्नेश, तृतीयेश, चतुर्थेश, षष्ठेश, सप्तमेश, नवमेश और द्वादशेश के साथ हो तो ज़मींदारी के साथ व्यापार भी जातक करता है ।
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४ - चतुर्थेश, दशमेश और चन्द्रमा बलवान् हों और वे ग्रह परस्पर में मित्र हों तो जातक ज़मींदार होता है ।
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भारतीय ज्योतिष
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