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है। आशय यह है कि चन्द्रमा से द्वितीय, सूर्य के अतिरिक्त अन्य ग्रह हों तो सुनफा; द्वादशस्थ ग्रह हों तो अनफा और द्वितीय द्वादशस्थ दोनों ही स्थानों में ग्रह हों तो दुर्धरा योग होता है। यदि चन्द्रमा से द्वितीय और द्वादशस्थ कोई ग्रह न हो तो केमद्रुम योग होता है । यथा
म.
चं.
चं.
बु.
-
सुनफा
अनफा
बुः
वं.
चं. दुर्धरा
कमदुम
दरिद्र योगों का विचार चन्द्रमा और सूर्य दोनों ग्रहों के द्वारा किया जाता है। यदि चन्द्रमा पापग्रह से युक्त हो, पापग्रह की राशि में हो अथवा पापनवांश में हो तो केमद्रुम योग होता है । रात्रि में जन्म होने पर चन्द्रमा दशमेश से दृष्ट हो या निर्बल हो तो केमद्रुम योग होता है।
चन्द्रमा पापग्रह से युत नीचस्थ हो, भाग्येश की दृष्टि हो अथवा रात्रि में क्षीण चन्द्रमा नीचगत हो तो केमद्रुम योग होता है।
केमद्रुम योग के होने पर भी यदि चन्द्रमा या शुक्र केन्द्र में हों, बृहस्पति से दृष्ट हों तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है । चन्द्रमा शुभग्रह से युक्त हो अथवा शुभग्रहों के मध्य में हो और बृहस्पति द्वारा दृष्ट हो तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है। चन्द्रमा अतिमित्र के गृह में अपनी उच्चराशि में अपने ग्रह या नवांश में स्थित हो और बृहस्पति द्वारा दृष्ट हो तो केमद्रुम योग भंग होता है।
सुनफा और अनफा योग के ३१ भेद हैं. और दुर्धरा योग के १८० । सुनफा और अनफा योग मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि इन पांचों ग्रहों से होते हैं। अतः इनके ३१ भेद हो जाते हैं। यहाँ उक्त पांचों ग्रहों के पांच विकल्प स्वीकार कर भेदों का प्रदर्शन किया जाता है । ३२४
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