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दारिद्र योगे
१ - षष्ठेश और धनेश का योग ३- - षष्ठेश और चतुर्थेश का योग ५ -- व्ययेश और धनेश का योग ७- षष्ठेश और दशमेश का योग ९- षष्ठेश और पंचमेश का योग ११ - व्ययेश और पंचमेश का योग १३ - षष्ठेश और भाग्येश का योग १५ - षष्ठेश और तृतीयेश का योग १७ - षष्ठेश और लाभेश का योग १९ - षष्ठेश और अष्टमेश का योग २१- षष्ठेश और व्ययेश का योग
२ - षष्ठेश और लग्नेश का योग ४ - व्ययेश और चतुर्थेश का योग ६ - व्ययेश और लग्नेश का योग ८ - व्ययेश और दशमेश का योग १० - षष्ठेश और सप्तमेश का योग १२ - व्ययेश और सप्तमेश का योग १४ - व्ययेश और भाग्येश का योग १६ - व्ययेश और तृतीयेश का योग १८ - व्ययेश और लाभेश का योग २० - व्ययेश और अष्टमेश का योग
ये दारिद्र योग धनस्थान में हों तो पूर्ण फल, व्ययस्थान में हों तो पादोन फल और अन्य स्थानों में हों तो अर्द्ध फल देते हैं ।
उन्हें पृथक् लिख लेना चाहिए। कम हों तो जातक धनवान् और दरिद्री या अल्प धनी होता है ।
उपर्युक्त धनी और दरिद्र योगों का विचार करने से जितने जो-जो योग आवें यदि धनी योग कुण्डली में अधिक हों और दरिद्र योग दरिद्र योग अधिक तथा धनी योग कम हों तो जातक इन योगों में रहस्यपूर्ण बात यह है योग कम हों और निर्बल दारिद्र योग अधिक हों तो जातक धनी;
कि बलवान् धनी
एवं दारिद्र योग बलवान् हों और उनकी अपेक्षा निर्बल धनो योग अधिक हों तो जातक धनी होते हुए भी कुछ समय के लिए दरिद्री - जैसा जीवन यापन करता है । धनी और निर्धनी का विचार करते समय देश, काल तथा जाति का विचार अवश्य कर लेना चाहिए । यदि किसी धनी घराने में पैदा हुए जातक की कुण्डली में धनी योग हो तो जातक लक्षाधीश या योग के बलाबलानुसार कोट्यधीश होता है । यदि वही योग किसी साधारण घर के जन्मे व्यक्ति की कुण्डली में हो तो वह अपनी स्थिति के अनुसार धनी होता है ।
जिसकी जन्मकुण्डली में दो बलवान् धनी योग हों वह सहस्राधिपति, तीन हों तो वह लक्षाधिपति, चार या पांच हों तो वह कोट्यधिपति होता है । इससे अधिक धनी योग होने पर जातक विपुल सम्पत्ति का स्वामी होता है ।
धनी योगों से एक दरिद्री योग अधिक हो तो अल्पधनी; दो अधिक हों तो दरिद्री और तीन अधिक हों तो भिक्षुक या तत्सदृश होता है ।
धनी योगों के अभाव में एक दरिद्री योग हो तो जातक दरिद्री, दो हों तो जीवन-भर धन के कष्ट से पीड़ित और तीन हों तो भिक्षुक होता है ।
१. देखें- जातकतत्त्व और जातकपारिजात ।
तृतीयाध्याय
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